नई दिल्ली। संरक्षित जनजातियों का प्रचार प्रसार और उनकी जीवन शैली को अब आपत्तिजनक वीडियो फिल्मों और यूट्यूब चैनलों पर दिखाना महंगा पड़ सकता है. राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने संरक्षित जारवा और अंडमान के अन्य जनजातीय समुदायों की तस्वीरों को प्रचार -प्रसार के रूप में प्रयोग करने पर कार्रवाई शुरू कर दी है. बता दे कि आदिम जनजाति शैली से रहने वाले संरक्षण प्राप्त देश के कुछ जनजातियों की गिनती और उनकी बेहतरी के लिए केंद्र सरकार ने पहले भी संबंधित राज्य सरकारों को गौर देने की पहल थी.
बता दें कि लोगों द्वारा सोशल मीडिया समेत कई चैनलों पर आदिम तरीके से जनजातियों के रहन-सहन पर सवाल उठाए जाने और उन्हें विवादित करार दिए जाने के बाद यह पहली दफा है जब जनजाति आयोग ने कड़े रूप से संज्ञान लिया है. इन जनजातियों को मिला संरक्षण अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में जनजातियों की जनसंख्या 28077 है जिसमें से संरक्षित जारवा जनजातियों की संख्या पांच सौ से भी कम है. जिसे संरक्षित करने के लिए अंडमान और निकोबार द्वीप (एबोरिजिनल जनजाति के संरक्षण) विनियमन, 1956 (पीएटी) जून 1956, को लागू किया गया है. जरावास, ऑनेज, सेंटिनेलीज़, निकोबारेसी को आदिवासी जनजाति के रूप में पहचान की गई है.
आयोग ने समुदायों को बाहरी हस्तक्षेप से बचाने का भी प्रावधान इसमें शामिल किया हैं. कानूनी तौर पर फोटो लेना वर्जित है आदिवासी जनजातियों से संबंधित विज्ञापन के जरिए पर्यटन को बढ़ावा देना या किसी भी प्रकार का इन संबंधित फोटो प्रयोग करना वर्जित है. 2012 के प्रावधान में किए गये परिवर्तन के हिसाब से इन क्षेत्रों में धारा 7 लागू है (जो रिज़र्व क्षेत्रों में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाता है) इसमें किसी भी तरीके के फोटो लेना या वीडियो बनाना अधिसूचना के उल्लंघन में आता है. इन क्षेत्रों में प्रवेश करना भी दंडनीय अपराध है. इस कानून के तहत तीन साल तक कारावास का भी प्रावधान है और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की धारा 3 (अ) (आर) भी यहाँ लागू होता है. जिसका पालन सभी को करना जरुरी है.

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