नई दिल्ली। दो महीने पहले बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुश्री मायावती ने जब राजस्थान में सक्रिय पार्टी के एक युवा कार्यकर्ता को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और नेशनल कोआर्डिनेटर जैसा अहम पद दिया था तो उस फैसले ने सबको चौंकाया था. पद देने के करीब दो महीने बाद जब बसपा प्रमुख ने एक झटके में ही जयप्रकाश से दोनों पद वापस ले लिया तो भी बसपा नेता के साथ-साथ अन्य लोग भी चौंके थे. किसी को भी यह यकीन नहीं था कि बहनजी इतनी तेजी से अपने ही बनाए राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पर कार्रवाई कर देंगी.
लेकिन अब आनन-फानन में की गई इस कार्रवाई का सच सामने आ गया है. असल में बसपा प्रमुख मायावती ने ऐसा कर के जहां कांग्रेस पार्टी के साथ अपनी दोस्ती को और मजबूती दे दी है तो वहीं उन्होंने एक झटके में भाजपा से कांग्रेस और राहुल गांधी को घेरने का एक बड़ा मुद्दा छीन लिया. इससे पहले की भाजपा, बसपा नेता के बयान के आधार पर कांग्रेस और बसपा पर सवाल खड़े करती, मायावती ने बाजी पलट दी. इस घटना ने यह भी साफ कर दिया है कि 2014 और 2017 के चुनाव में झटका खा चुकीं मायावती अब सियासत की राह पर संभल कर कदम बढ़ा रही हैं.
असल में मायावती नहीं चाहती थी कि जयप्रकाश सिंह का बयान बसपा को घेरने का हथियार बनें. कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के साथ बहनजी के रिश्ते सभी देख चुके हैं, मायावती उसमें भी कोई दरार नहीं चाहती थी. जो सबसे बड़ी बात है कि 2019 में अगर तमाम प्रमुख पार्टियों के सत्ता का गणित गड़बड़ाता है और मायावती के नाम पर तमाम दल एकमत होते हैं तो उस समय कांग्रेस का समर्थन बहुत जरूरी होगा. मायावती उस स्थिति तक पहुंचने के रास्ते में कोई रुकावट नहीं चाहती हैं.
जहां तक जयप्रकाश सिंह का सवाल है तो राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनने के बाद उनके रंग-ढंग अचानक से बदल गए थे. उनके तमाम बयानों की चर्चा पार्टी के अंदर पहले से थी और पार्टी नेताओं को पहले से ही आशंका थी कि उन पर कभी भी गाज गिर सकती है. ऐसे में जब उन्होंने सीधे राहुल गांधी पर निशाना साध दिया तो सियासत में अपनी छवि को लेकर काफी सजग मायावती ने बिना देरी किए उन पर कार्रवाई कर डाला.
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