खबर के साथ लगी तस्वीर देखिए. यह तस्वीर अगर आपकी बेटी की होती तो शायद आपको दर्द समझ में आता. खैर. श्रीनगर में एक ईदगाह है. वहां 2 साल की बच्ची की कब्र है. सीआरपीएफ की गोली उस बच्ची के माथे में आकर लगी थी. तुफैल की भी एक कब्र है. किशोर तुफैल स्कूल जा रहा था. सेना ने आंसू गैस का गोला उसके माथे पर ही मार दिया. तुफैल का भेजा उसके शरीर से अलग हो गया. उसके बाप को उसका शरीर और भेजा, दोनों उठाना पड़ा.
तुफैल भी कहीं ईदगाह की कब्र में दफन है. इस बच्ची के भी मां-बाप, भाई होंगे ही. पता नहीं क्या सोच रहे होंगे. आप कोशिश कीजिए महसूस करने की क्या सोच रहे होंगे. हर शुक्रवार को ईदगाह में जुमे की नमाज अदा होती है. उसके बाद पथराव किया जाता है. आपके अपनों की कब्र होती तो आप क्या करते?
मुझसे एक अलगाववादी ने कहा था, भारत की आजादी की लड़ाई 200 साल से अधिक चली. कश्मीर में तो अभी लड़ते हुए 100 साल भी नहीं हुए.
हाल-फिलहाल दिल्ली में एक नया तर्क गढ़ा गया. अलगाववादी नेताओं के बच्चे विदेश में पढ़ रहे हैं. आपको लगता है कि आपने रॉकेट साइंस खोजा है, तो नहीं. वहां के लोगों को भी यह बात पता है. फिर भी वे लड़ रहे हैं. आपको उनकी लड़ाई के पीछे का तर्क ढूंढना है तो वहां जाना होगा. न्यूज एजेंसी से आ रही खबरें और प्रॉपेगैंडा देखकर आपको घंटा समझ में आएगा.
– यह पोस्ट टीवी पत्रकार अमीश राय के फेसबुक वॉल से लिया गया है.
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