उदित राज ने अपने गले से कमल छाप गमछा उतार दिया है. अब उन्होंने तीरंगा छाप नया गमछा डाल लिया है जिस पर हाथ का निशान बना हुआ है. उनके ट्विटर का कवर इमेज भी बदल चुका है. अब उसमें नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की तस्वीर के बदले राहुल गांधी की तस्वीर चस्पा हो गई है. उदित राज ने चौकीदारी से भी इस्तीफा दे दिया है, अब वो पहले की तरह पढ़े लिखे डॉ. उदित राज बन गए हैं. जी हां, उदित राज कांग्रेस पार्टी में पहुंच गए हैं. कल तक मोदी के चौकीदार ग्रुप के सक्रिय सदस्य रहे उदित राज अब राहुल गांधी के राफेल ग्रुप में शामिल हो गए हैं.
23 अप्रैल को काफी ऊहापोह में रहने और पल-पल अपना फैसला बदलने के बाद उदित राज ने 24 अप्रैल को कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर लिया. अब बड़ा सवाल यह है कि उदित राज कांग्रेस में कौन सी जिम्मेदारी निभाएंगे. यह सवाल इसलिए क्योंकि भाजपा ने फिलहाल उदित राज को कहीं न नहीं छोड़ा है. उसने ऐसे वक्त में उदित राज का टिकट काटा कि उनके पास निर्दलीय लड़ने का भी रास्ता नहीं बचा रह गया. 23 अप्रैल को दिल्ली में नामांकन के लिए आखिरी तारीख थी.
उदित राज ने अपने बयान में इसका जिक्र भी किया. उन्होंने कहा कि अब अगर निर्दलिय लड़ भी जाऊंगा तो इतने कम समय में लाखों लोगों तक अपना नया चुनाव चिन्ह कैसे पहुंचाऊंगा. यानि कि भाजपा को यह डर था कि वह अगर उदित राज का टिकट काट देती है तो वह निर्दलीय ताल ठोक सकते हैं. शायद इसीलिए उन्होंने उदित राज की सीट को आखिर तक फंसाए रखा.
अब बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस पहुंचे उदित राज की अगली रणनीति क्या होगी? क्योंकि दिल्ली में तो फिलहाल लोकसभा चुनावों में बाजी उनके हाथ से निकल चुकी है. ऐसे में क्या कांग्रेस उदित राज को किसी अन्य राज्य से मौका देगी? अगर ऐसा होता है तो संभव है कि उदित राज कांग्रेस से अपनी नई राजनीति की शुरुआत उत्तर प्रदेश में कर सकते हैं. कांग्रेस पार्टी को भी उत्तर प्रदेश में एक बड़े दलित चेहरे की जरुरत है. फिलहाल कांग्रेस के भीतर उत्तर प्रदेश में कोई ऐसा कद्दावर नेता नहीं है तो राजनीतिक तौर पर आधार वाला नेता हो. पी.एल. पुनिया उत्तर प्रदेश से हैं भी तो सालों तक प्रशासनिक अधिकारी के पद पर रहने के कारण उनकी छवि खांटी परंपरागत राजनीतिज्ञ वाली नहीं बन पाई है.
तो क्या यह माना जाए कि कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में उदित राज को मायावती के बरक्स मजबूत करने की रणनीति पर काम कर सकती है? भाजपा ज्वाइन करते वक्त भी उदित राज ने दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और यूपी में बसपा और मायावती के बरक्स काम करने की इच्छा जताई थी, लेकिन भाजपा ने न तो उन्हें दिल्ली में कोई महत्वपूर्ण रोल दिया और न ही उत्तर प्रदेश में. ऐसे में उदित राज कांग्रेस से भी इस तरह की भूमिका की उम्मीद लगाए बैठे होंगे. फिलहाल इससे इंकार नहीं किया जा सकता. क्योंकि वर्तमान लोकसभा चुनाव में प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश के राजनैतिक मैदान में उतार कर यह साफ कर दिया है कि कांग्रेस भले ही लोकसभा चुनाव में तीसरे नंबर के लिए लड़ रही हो, विधानसभा चुनाव में वह पहले नंबर के लिए लड़ेगी. संभव है कि ऐसे में उदित राज उसके लिए कारगर हो सकते हैं.
तमाम बहस से इतर उदित राज की घटना ने राजनीति के सबसे गहरे रंग को दिखाया है. जिसमें न विचारधारा प्रमुख है और न पार्टी, महत्वपूर्ण है तो पद और पावर में बने रहना. पूरे राजनैतिक जगत की यही कहानी है. इस हमाम में किसी को किसी से ऐतराज नहीं.
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अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।