मुसलमानों और ईसाइयों को एससी लिस्ट में लाने का सबसे बड़ा तर्क ये दिया जाता है कि सिखों (1956)और बौद्धों (1990) को बाद में इसमें लाया गया तो मुसलमानों और ईसाइयों को क्यों नहीं?
फैक्ट
1. सिख हमेशा से एससी लिस्ट में हैं। 1950 का ऑर्डर पढ़िए। साफ़ लिखा है कि सिखों में SC होंगे। ये झूठ दरअसल सबसे पहले कांग्रेसी सांसद और सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड चीफ़ जस्टिस रंगनाथ मिश्रा ने अपनी रिपोर्ट से फैलाया।
वह इंटरनेट और RTI से पहले का ज़माना था। साहब झूठ बोलकर निकल लिए। 1950 का ऑर्डर आम लोगों को उपलब्ध कहाँ होता? तो ये झूठ चल गया कि सिखों को 1956 में SC का दर्जा मिला। अब 1950 का ऑर्डर दर्जनों सरकारी वेबसाइट पर है। लाखों लोग पढ़ रहे हैं। मिश्रा का झूठ पकड़ा गया। सिखों के लिए 1950 के ऑर्डर में संशोधन नहीं हुआ है। वे 1950 से एससी में हैं।
2. भारतीय संविधान हिंदुओं की एक व्यापक परिभाषा देता है। अनुच्छेद 25 में इसे स्पष्ट किया गया है और हिंदुओं में सिख, जैन और बौद्धों को शामिल किया गया है। इसलिए हिंदुओं के प्रावधान उन पर लागू हैं। मुश्किल ये है कि लोग संविधान तक पलटकर नहीं देखना चाहते।
3. बौद्धों को एससी में शामिल नहीं किया गया है। नव बौद्धों को किया गया है। 1950 के ऑर्डर के समय से ये SC ही थे। 1990 का ऑर्डर निरंतरता में है।
4. मुसलमानों या ईसाइयों को SC में लाना 1950 के ऑर्डर का ही नहीं, अनुच्छेद 25 और संविधान सभा तथा पूना पैक्ट में बनी सहमति का भी उल्लंघन होगा।
दिलीप मंडल के ट्विटर पोस्ट से साभार

दलित दस्तक (Dalit Dastak) साल 2012 से लगातार दलित-आदिवासी (Marginalized) समाज की आवाज उठा रहा है। मासिक पत्रिका के तौर पर शुरू हुआ दलित दस्तक आज वेबसाइट, यू-ट्यूब और प्रकाशन संस्थान (दास पब्लिकेशन) के तौर पर काम कर रहा है। इसके संपादक अशोक कुमार (अशोक दास) 2006 से पत्रकारिता में हैं और तमाम मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं। Bahujanbooks.com नाम से हमारी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुक किया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को सोशल मीडिया पर लाइक और फॉलो करिए। हम तक खबर पहुंचाने के लिए हमें dalitdastak@gmail.com पर ई-मेल करें या 9013942612 पर व्हाट्सएप करें।