मेरे बिजनौर ने ख़ुद को तुरंत संभाल लिया इसके लिए उसे सलाम. वरना साज़िश तो बड़ी थी. बिजनौर का मूल स्वभाव अमन पसंद है, हालांकि बीच-बीच में कुछ लोग माहौल ख़राब करने की कोशिश करते रहते हैं. इस बार भी यही कोशिश हुई. पेदा गांव की घटना में तो तथ्यों से भी खिलवाड़ किया गया. यहां छेड़छाड़ भी मुस्लिम समुदाय की लड़की के साथ की गई और फिर हमला भी मुस्लिम समुदाय पर किया गया. लेकिन शुरुआत में शहर और आसपास यह अफवाह फैलाई गई कि जाटों की लड़की के साथ छेड़छाड़ हुई. इस तरह कुछ नेताओं ने इसे ‘क्रिया की प्रतिक्रिया’ भी साबित करने की कोशिश की. लेकिन उनकी यह कोशिश नाकाम रही.
शुक्रवार (16 सितंबर) को कई अख़बारों की वेबसाइट में भी इसे कुछ इसी तरह पेश करने की कोशिश की गई और इस घटना को दो समुदाय के बीच झड़प और संघर्ष का नाम दिया गया. दो समुदाय के बीच संघर्ष या झड़प उसे कहते हैं जिसमें दोनों समुदाय के लोग घायल हों, लेकिन यहां तो सिर्फ़ एक ही समुदाय (मुस्लिम) के लोग मारे गए और घायल हुए. बाकायदा सुनियोजित ढंग से उनके ऊपर हमला किया गया. इसमें कुछ स्थानीय पुलिस वालों की भूमिका भी संदिग्ध रही. वो तो शुक्र मनाइए कि तुरंत एसपी-डीएम के साथ प्रदेश स्तर के आला अधिकारी सक्रिय हो गए और बिजनौर के अमन पसंद लोगों ने भी इसे बहुत तूल नहीं दिया, जिससे बात संभल गई, वरना बिजनौर को भी मुज़फ़्फ़रनगर बनाया जा सकता था.
ख़ैर बिजनौर अब शांत है और रोजमर्रा के काम चल रहे हैं. मृतकों को सुरक्षा के बीच सपुर्दे-ख़ाक कर दिया गया है. बिजनौर का माहौल ख़राब करने वालों की साज़िश तो सफल नहीं हुई, लेकिन आगे बहुत संभलकर रहने की ज़रूरत है, क्योंकि गाय के बाद अब छेड़छाड़ को हथियार बनाकर जगह-जगह माहौल ख़राब करने की कोशिश की जाती रहेगी. यूपी चुनाव तक तो यह प्रक्रिया काफी तेज़ रहने वाली है. यूपी के कई शहरों से इस तरह छिटपुट हिंसा और तनाव की ख़बरें कई दिनों से आ भी रही हैं. इस दौरान न केवल सयंम से रहने की ज़रूरत है, बल्कि अफवाह से भी बचने की ज़रूरत है. सोशल मीडिया पर भी ऐसी घटनाओं पर कुछ लिखने से पहले तथ्यों की सही से जांच कर सही तथ्य अन्य लोगों के सामने लाने चाहिए, ताकि अफवाह फैलाने वालों को मुंह तोड़ जवाब मिले और उनकी साज़िश सफल न हो.
– लेखक के फेसबुक वॉल से. लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.
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