यूपी विधानसभा चुनाव अपने आखिरी चरण की ओर बढ़ चला है। आखिरी दो चरणों की लड़ाई पूर्वांचल में लड़ी जा रही है। इन दो चरणों की 111 सीटों पर 3 और 7 मार्च को मतदान होना है। छठवे चरण में 10 जिलों की 57 सीटों पर गुरुवार को वोटिंग हो रही है। 2017 में इन 57 सीटों में से भाजपा ने 46 सीटें जीती थी, बसपा ने पांच, सपा ने दो जबकि कांग्रेस को एक सीट पर जीत मिली थी। हालांकि 2012 में समाजवादी पार्टी 32 सीटें जीती थी।
एक बार फिर से जीत के इस आंकड़े को दोहराने के लिए भाजपा की ओर से खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत तमाम दिग्गज चुनाव प्रचार में जुटे हैं। लेकिन इस क्षेत्र में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने टिकट के बंटवारे में जाति का ऐसा जाल बुना है, जिसमें भाजपा उलझती नजर आ रही है।
इसमें तुर्रा यह कि पूर्वांचल की 8 जिलों की 16 सीटें ऐसी हैं, जहां बीजेपी आज तक अपना खाता नहीं खोल पाई है। जैसे आजमगढ़ की सदर सीट को भाजपा आज तक नहीं जीत पाई है। इसके अलावा गोपालपुर, सगड़ी, मुबारकपुर, अतरौलिया, निजामाबाद और दीदारगंज में भी आज तक कमल नहीं खिला है। मऊ सदर की सीट भी भाजपा अब तक नहीं जीत पाई है। तो सीएम योगी के शहर गोरखपुर की चिल्लूपार सीट, देवरिया की भाटपाररानी सीट और जौनपुर की मछलीशहर विधानसभा सीट पर भी भाजपा का खाता नहीं खुला है।
10 जिलों की जिन सीटों पर छठवें चरण का मतदान हो रहा है, उसमें अंबेडकर नगर की 5, बलरामपुर की 4, सिद्धार्थनगर की 5, बस्ती की 5, संतकबीर नगर की 3, महाराजगंज की 5, गोरखपुर की 9. कुशीनगर की 7, देवरिया की 7 और बलिया की 7 सीटें शामिल हैं। इन जिलों में दलित, ओबीसी और ब्राह्मण वोटर सबसे ज्यादा निर्णायक हैं। कुछ जिलों में मुस्लिम वोटर भी मजबूत है। दलित वोटों की बात करें तो वह 22-25 प्रतिशत तक है।
छठवें और सातवें चरण में अस्मिता की राजनीति करने वाले ओमप्रकाश राजभर, डॉ. संजय निषाद, अनुप्रिया पटेल जैसे नेताओं की भी परीक्षा होगी। कुल मिलाकर पूर्वांचल में होने वाले अंतिम दो चरणों का चुनाव उत्तर प्रदेश की राजनीति तय करने के साथ अस्मिता की राजनीति करने वाले राजनैतिक दलों और नेताओं का भी भविष्य तय करेगा।
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राज कुमार साल 2020 से मीडिया में सक्रिय हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों पर पैनी नजर रखते हैं।