उत्तर प्रदेश चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच समझौता होने के बाद एक चर्चा आम है. चर्चा है कि यहां चुनाव प्रचार में अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव और सोनिया गांधी की बेटी प्रियंका गांधी वाड्रा चुनाव प्रचार के लिए उतरेंगी. खबरों में यह भी कहा जा रहा है कि दोनों साथ उतर सकती हैं और ऐसे में वे दोनों बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती के लिए चुनौती बन सकती हैं. तर्क यह दिया जा रहा है कि लोगों के बीच इन दोनों का ग्लैमर ज्यादा काम करेगा और ये युवाओं को जोर पाएंगी.
असल में यह तमाम अखबारों और वेबसाइटों पर चल रहा यह तर्क बेहद बेकार है. क्योंकि अगर लोग किसी नेता की सुंदर छवि को देख कर वोट देते तो फिर इस देश की सत्ता पर मॉडल और फिल्मी हस्तियों का राज होता. इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि जनता जिन चेहरों को रुपहले पर्दे पर देखती है, सामने आने पर उनसे प्रभावित हो जाती है. लेकिन यह लंबे वक्त के लिए नहीं होता. वैसे भी अगर साउथ को छोड़ दिया जाए तो उत्तर भारत की चुनावी राजनीति में आए फिल्मी हस्तियों ने जनता को निराश ही किया है. ऐसे में किसी भी राजनीतिक परिवार से जुड़े किसी व्यक्ति के ग्लैमर के जरिए चुनाव को प्रभावित करने की बात बेमानी है. प्रभावित हो भी जाए तो इससे चुनावी जीत संभव नहीं है.
एक तथ्य यह भी है कि चुनाव में किसी व्यक्ति विशेष का चेहरा नहीं बल्कि विचारधारा मायने रखती है. और उत्तर प्रदेश चुनाव में भी विचारधारा की ही लड़ाई है. एक तरफ अम्बेडकरवादी विचारधारा है जो समाज के हर नागरिक को साथ लेकर चलने और संविधान के अनुरूप काम करने को तव्वजो देती है तो दूसरी ओर कांग्रेस और समाजवादी विचारधारा का हाल आज क्या है, यह जगजाहिर है. इन दोनों विचारधाराओं की बात करें तो समाजवाद माने मुलायम परिवार और कांग्रेस माने गांधी परिवार होता है.
अगर डिंपल यादव और प्रियंका गांधी चुनाव प्रचार के लिए मैदान में उतरती भी हैं तो सिवाय भीड़ जुटाने के वह कुछ और कर पाएं इसमें संदेह है. और अगर प्रियंका गांधी में उत्तर प्रदेश की राजनीति को प्रभावित करने की उतनी ही क्षमता होती तो कांग्रेस का यह हाल नहीं होता. इन दोनों के पास जो भी है वह इनके परिवार की मेहनत से उपजा है, न कि इन दोनों का इसमें अपना कोई व्यक्तिगत योगदान है. जबकि बसपा प्रमुख मायावती ने जो कुछ भी अर्जित किया है उसमें उनकी मेहनत, संघर्ष और त्याग की भूमिका है. और बसपा और मायावती जितना जनसमर्थन जुटाने में जब भाजपा जैसी बड़ी पार्टी औऱ देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक का पसीना छूट गया और इसके बाद भी वो सफल नहीं हो सके तो फिर अन्य नाम कहां ठहरते हैं.
फिर भी अगर उत्तर प्रदेश चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस यह भ्रम पाले हैं कि बसपा प्रमुख मायावती के सामने वह डिंपल यादव और प्रियंका गांधी को उतार कर बसपा को रोक सकते हैं तो यह संभव नहीं दिखता. क्योंकि जीत हमेशा संघर्ष की होती है.
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।