महोबा। आज यहां हम 21वीं सदी में चांद पर जाने की बात कर रहे है मगर अभी भी ऊंचनीच का बंधन अभिशाप बना हुआ है. बुंदेलखंड के महोबा में ऐसा ही एक मामला सामने आया है जिसमें एक दलित वृद्ध की सिर्फ इसलिए हत्या कर दी गई क्योंकि वो ब्राह्मणों के समीप अपना आशियाना बनाकर रहने की कोशिश कर रहा था. ब्राह्मणों को ये बात नगवार गुजरी और उन्होंने दलित वृद्ध की लाइसेंसी बंदुक की बटों से पीट-पीट कर हत्या कर दी. इस घटना से मृतक के परिजन सदमे में है और उन्हें अपने जीवन पर भी खतरा मंडराता दिखाई दे रहा है.
देश के सभी राजनीतिक दल दलितों को बराबरी का सम्मान दिलाने की बात करते है, इसके लिए जागरूकता का काम भी किया जाता है. मगर आज भी दलितों को न केवल अपमान झेलना पड़ता है बल्कि उन्हें ऊंचनीच की भेंट चढ़ा दिया जाता है. महोबा जनपद में हुई दलित की हत्या इसी का एक उदाहरण है. दरअसल महोबा के थाना पनवाड़ी के ग्राम रूपनोल में सवर्णों का वर्चस्व है. इसी गांव में रहने वाले 55 वर्षीय दयाराम अहिरवार को पिछले वर्ष पूर्व प्रधान द्वारा आवासीय पट्टा आबंटित किया गया था. जिसके अंतर्गत कुछ जमीन पट्टे में दी गई थी.
ये जमीन गांव में रहने वाले पंडित बाबूलाल के बगल में थी. दलित को जमीन पट्टे में मिली तो सवर्णो को बड़ा नागवार गुजरा. इस बात को लेकर दलित के परिवार को बाबूलाल, जगदीश और धीरेंद्र ने प्रताड़ित करना शुरू कर दिया. 20 नवंबर को सवर्णों ने दलित की जमीन पर जबरन कब्जा कर रहे थे तभी दलित दयाराम भी मौके पर पहुंच गया और उसने जमीन पर कब्जे का विरोध किया. फिर क्या था सवर्ण बाबूलाल, जगदीश और धीरेंद्र ने दलित वृद्ध को बंदूकों की बटों से पीटना शुरू कर दिया.
वृद्ध चीख-पुकार सुनकर दलित का पुत्र राजेश और पत्नी राजकुमारी भी मौके पर पहुंच गए. सवर्ण उन्हें भी पीटने के लिए दौड़े मगर आस-पास के लोगों के आ जाने पर वो लोग भाग गए. वृद्ध को घायल अवस्था में थाना पनवाड़ी लाया गया. दलित ने सवर्णों द्वारा बेरहमी से पीटने का बयान दिया और उसे इलाज के लिए पनवाड़ी सामुदायिक केंद्र में भर्ती कराया गया. जहां बाद में उसने दम तोड़ दिया. दलित की मौत होने की सूचना मिलते ही पुलिस भी अस्पताल पहुंच गई और शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.
मृतक के पुत्र राजेश का कहना है कि गांव में दलितों के कुछ ही परिवार है. ऐसे में ब्राह्मण जाति के लोग उन पर अत्याचार करते हैं और उन्हें आये दिन सताया जाता है. पट्टे की जमीन मिलने से सवर्ण नाराज थे और उन्हें आये दिन धमकी देकर जमीन छोड़ने के लिए दबाव बना रहे थे. राजेश ने कहा कि सवर्णों ने मेरे पिता की हत्या कर दी और अब हमें भी जीने नहीं देंगे. पुलिस ने भी कम धाराओं में मुकदमा दर्ज किया है और अभी तक आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया.
पुलिस सवर्णों के प्रभाव में काम कर रही है. वहीं मृतक दलित की पत्नी राजकुमारी ने बताया की सवर्ण उन्हें काफी समय से प्रताड़ित कर रहे थे. वो पूरे परिवार को जान से मारना चाहते थे मगर हम बच गए. उन्हें अपनी सुरक्षा की चिंता सता रही है. वहीं इस मामले में पुलिस अधिक्षक गौरव सिंह का कहना है कि घटना की जांच की जा रही है. मौत कैसे हुई ये पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही पता चलेगा. मृतक द्वारा खुद बयान दिए जाने पर पुलिस कप्तान ने बताया कि अभी इसकी जानकारी नहीं है. जांच कराई जा रही है जो भी दोषी होगा उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. पुलिस का रवैया दलितों के प्रति न तो उदार नजर आ रहा है और न ही न्यायहित में. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि दलित की हत्या के मामले में उसके परिवार को कितना और कब न्याय मिलेगा?

दलित दस्तक (Dalit Dastak) साल 2012 से लगातार दलित-आदिवासी (Marginalized) समाज की आवाज उठा रहा है। मासिक पत्रिका के तौर पर शुरू हुआ दलित दस्तक आज वेबसाइट, यू-ट्यूब और प्रकाशन संस्थान (दास पब्लिकेशन) के तौर पर काम कर रहा है। इसके संपादक अशोक कुमार (अशोक दास) 2006 से पत्रकारिता में हैं और तमाम मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं। Bahujanbooks.com नाम से हमारी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुक किया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को सोशल मीडिया पर लाइक और फॉलो करिए। हम तक खबर पहुंचाने के लिए हमें dalitdastak@gmail.com पर ई-मेल करें या 9013942612 पर व्हाट्सएप करें।