ज्ञात हो कि निजी क्षेत्र में आरक्षण की व्यवस्था नहीं है. ऐसे में भाजपा के शीर्ष नेता सुब्रहमनियम स्वामी का यह कहना, ‘सरकारी नौकरियों में एससी और एसटी को मिलने वाले आरक्षण के नियमों को इतना शिथिल कर दिया जाएगा कि आरक्षण को किसी भी नीति के तहत समाप्त करने की जरूरत ही नहीं होगी, धीरे-धीरे स्वत: ही शिथिल हो जाएगा.’…आजकल यह सच होता नजर आ रहा है.
सरकार ने अपने चहेतों को अधिकारी बनाने के लिए बेक डोर एंट्री के जरिए प्रशासनिक सुधार के नाम पर सीधे संयुक्त सचिव बनाने के लिए ऑफर दिया है. अधिकारी बनने के लिए अब यूपीएससी की सिविल सर्विस परीक्षा पास करना जरूरी नहीं होगा. दरअसल मोदी सरकार ने नौकरशाही में प्रवेश पाने का अब तक सबसे बड़ा बदलाव कर दिया है. एक फैसले के बाद अब प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले सीनियर अधिकारी भी सरकार का हिस्सा बन सकते हैं. लैटरल (बैकडोर) एंट्री के जरिए सरकार ने इस योजना को नया रूप दे दिया है. रविवार (10.06.2018) को इन पदों पर नियुक्ति के लिए डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनेल ऐंड ट्रेनिंग (DoPT) के लिए विस्तार से गाइडलाइंस के साथ अधिसूचना जारी की गई है. शुरू से ही पीएम नरेन्द्र मोदी ब्यूरोक्रेसी में लैटरल एंट्री के के हिमायती रहे हैं. इसलिए सरकार अब इसके लिए सर्विस रूल में जरूरी बदलाव भी करेगी. डीओपीटी की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार मंत्रालयों में जॉइंट सेक्रटरी के पद पर नियुक्ति होगी.
इन पदों पर आवेदन के लिए अधिकतम उम्र की सीमा तय नहीं की गई है. इनका वेतन केंद्र सरकार के अंतर्गत जॉइंट सेक्रटरी वाला होगा. सारी सुविधा उसी अनुरूप ही मिलेगी. इन्हें सर्विस रूल की तरह काम करना होगा और दूसरी सुविधाएं भी उसी अनुरूप मिलेंगी. मालूम हो कि किसी मंत्रालय या विभाग में जॉइंट सेक्रटरी का पद काफी अहम होता है और तमाम बड़ी नीतियों को अंतिम रूप देने में या उनके अमल में इनका अहम योगदान होता है.
नवभारत टाइम्स के अनुसार इनके चयन के लिए किसी भी प्रत्याशी को कैबेनेट सेक्रेटरी की अगुवाई वाली कमिटी के सामने केवल एक इंटरव्यू देना होगा. योग्यता के अनुसार सामान्य ग्रेजुएट और किसी सरकारी, पब्लिक सेक्टर यूनिट, यूनिवर्सिटी के अलावा किसी प्राइवेट कंपनी में 15 साल काम का अनुभव रखने वाले भी इन पदों के लिए आवेदन दे सकते हैं. आवेदन में योग्यता इस तरह तय की गई है कि उस हिसाब से कहीं भी 15 साल का अनुभव रखने वालों के सरकार के टॉप ब्यूरोक्रेसी में डायरेक्ट एंट्री का रास्ता खुल गया है…. क्या ऐसे नियुक्त अधिकारियों को ‘पैराशूट अधिकारी’ की संज्ञा से नहीं नवाजा जाना चाहिए?
कहा जा रहा है कि राष्ट्र निर्माण में निजी क्षेत्र के प्रतिभाशाली और प्रेरणादायी लोगों का सहयोग लेने के लिए सरकार ने अपने कई विभागों में वरिष्ठ प्रशासनिक पदों पर सीधी भर्ती का फैसला किया है. यह भर्ती संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) परीक्षा से इतर होगी और इसमें संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी नियुक्त किए जाएंगे. प्रयोग के तौर पर फिलहाल केवल दस पदों पर भर्ती की जाएगी. प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित विज्ञापन के अनुसार सरकार प्रतिभाशाली लोगों को आमंत्रित कर रही है. ये लोग राजस्व, आर्थिक सेवाओं, आर्थिक मामलों, कृषि, समन्वय, कृषक कल्याण, सड़क परिवहन और राजमार्ग, जहाजरानी, पर्यावरण, वन और पर्यावरण, नई और अक्षय ऊर्जा, नागरिक उड्डयन और वाणिज्य क्षेत्र में कार्य करने के लिए आमंत्रित किए गए हैं. केंद्र सरकार के नियुक्ति और प्रशिक्षण विभाग की ओर से जारी परिपत्र में कहा गया है कि भारत सरकार प्रतिभाशाली लोगों की सेवाएं संयुक्त सचिव स्तर पर लेकर उन्हें राष्ट्र निर्माण से जोड़ने की इच्छुक है. यह नियुक्ति शुरुआत में तीन साल के लिए होगी. अगर प्रदर्शन अच्छा देखा गया तो उनके कार्यकाल को पांच साल तक बढ़ाया जा सकता है.
ये लोग विभाग के सचिव और अतिरिक्त सचिव के मातहत कार्य करेंगे, जो आमतौर पर आइएएस, आइपीएस, आइएफएस और अन्य अधीनस्थ सेवाओं के होते हैं. वैसे केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी भी इन्हीं सेवाओं से आए होते हैं. इनकी भर्ती संघ लोक सेवा आयोग द्वारा त्रिस्तरीय परीक्षा के जरिये की जाती है. निजी क्षेत्र के जिन विशेषज्ञों को सरकारी सेवा के लिए आमंत्रित किया गया है, उनकी एक जुलाई, 2018 को न्यूनतम 40 वर्ष की आयु होनी चाहिए. वे ग्रेजुएट होने चाहिए. अतिरिक्त योग्यता वाले आवेदनकर्ता को अतिरिक्त लाभ मिलेगा. निजी क्षेत्र के उपक्रमों, स्वायत्त संस्थाओं, विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों में कार्यरत लोग भी आवेदन कर सकते हैं. उनके लिए 15 साल का अनुभव आवश्यक होगा. चयनित अधिकारियों का वेतनमान संयुक्त सचिव के समकक्ष ही होगा. भत्ते और सुविधाएं के अतिरिक्त होंगे.
नौकरशाही के पिछले दरवाजे को निजी क्षेत्र के पेशेवरों के लिए खोलने के लिए केंद्र सरकार के फैसले पर कांग्रेस और माकपा ने जमकर विरोध जताया है. जबकि नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने सरकार के फैसले का स्वागत किया है. कांग्रेस प्रवक्ता पी एल पूनिया ने कहा कि इस प्रकार की भर्तियों के जरिये सरकार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, भाजपा और कुछ चहेते औद्योगिक घरानों के लोगों को सरकारी मशीनरी में फिट करना चाहती है. इससे जवाबदेही पर आधारित पूरे तंत्र का नाश हो जाएगा. अभी तक आइ ए एस अधिकारियों की भर्ती की जो प्रक्रिया है, वह पूरी तरह से पारदर्शी है, सरकार उसको भी खत्म करना चाहती है. पूनिया खुद भी पूर्व आइएएस अधिकारी हैं.
माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा है कि सरकार इन नियुक्तियों के बहाने संघ से जुड़े लोगों को सरकारी पदों पर बैठाना चाहती है ताकि नौकरशाही में दखल कायम किया जा सके. हमारा स्पष्ट मानना है कि यह कदम देश के लिए कुल मिलाकर नुकसानदायक साबित होगा. सरकार को इस तरह के कदम से बचना चाहिए.
नवभारत टाइम्स का यह भी कहना है कि इस प्रकार की सीधी भर्ती का पहला प्रस्ताव 2005 में प्रशासनिक सुधार पर पहली रिपोर्ट में आया था, लेकिन तब इसे सिरे से खारिज कर दिया गया था. फिर 2010 में आई प्रशासनिक सुधार पर दूसरी रिपोर्ट में भी ऐसा करने की सिफारिश की गई, वो भी बेनतीजारही. लेकिन पहली गम्भीर पहल पर 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद हुई. पीएम ने 2016 में इसकी संभावना तलाशने के लिए फिर कमिटी बनाई, जिसने अपनी रिपोर्ट में इस प्रस्ताव पर आगे बढ़ने की अनुशंसा करदी….. भला करती भी क्यों न?… कमिटी मोदी सरकार द्वारा जो बनाई गई थी.
यथोक्त के आलोक में यहाँ पुन: उल्लिखित है कि भाजपा के शीर्ष नेता सुब्रहमनियम स्वामी का यह कहना, ‘सरकारी नौकरियों में एस सी और एस टी को मिलने वाले आरक्षण के नियमों को इतना शिथिल कर दिया जाएगा कि आरक्षण को किसी भी नीति के तहत समाप्त करने की जरूरत ही नहीं होगी, धीरे-धीरे स्वत: ही शिथिल हो जाएगा.’ आज इसकी शुरुआत होती नजर आ रही है. ज्ञात हो कि निजी क्षेत्र में आरक्षण की व्यवस्था नहीं है. एस सी/एस टी और ओ बी सी वर्ग के लिए आज का दिन कोTop of Form
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भारत के सामाजिक लोकतंत्र के इतिहास में एक कलंकित दिन के तौर पर याद किया जाएगा. स्मरण रहे कि इस आशय के विज्ञापन में साफ-साफ लिखा है कि ये अफसर निजी क्षेत्र या विदेशी कंपनियों से भी हो सकते हैं. किंतु इन नियुक्तियों में एस सी, एस टी, ओ बी सी और विकलांगों (SC, ST, OBC, PH) को प्रदत्त आरक्षण की सुविधा समेत अन्य किन्हीं संवैधानिक नियमों का पालन नहीं होगा. कहना अतिशयोक्ति न होगा कि आप इसे सरकारी नौकरियों में आरक्षण की समाप्ति की दिशा में अब तक का सबसे बड़ा और पहला कदम मान सकते हैं.
दिलीप मंडल का कहना है कि ऐसा करके सरकार संविधान के कई अनुच्छेदों का सीधा उल्लंघन कर रही है. अनुच्छेद 15 (4) का यह सीधा उल्लंघन है, जिसमें प्रावधान है कि सरकार वंचितों के लिए विशेष प्रावधान करेगी. अनुच्छेद 16 (4) में लिखा है कि सरकार के किसी भी स्तर पर अगर वंचित समुदायों के लोग पर्याप्त संख्या में नहीं हैं, तो उन्हें आरक्षण दिया जाएगा. ज्वांयट सेक्रेटरी लेबल पर चूंकि एस सी, एस टी, ओ बी सी के लोग पर्याप्त संख्या में नहीं हैं, इसलिए उनकी नियुक्ति में आरक्षण न देने का आज का विज्ञापन 16(4) का स्पष्ट उल्लंघन है. अनुच्छेद 15 और 16 मूल अधिकार हैं. यानी वर्तमानभारत सरकार नागरिकों के मूल अधिकारों के हनन की अपराधी है. इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 315 से 323 में यह बताया गया कि केंद्रीय लोक सेवा आयोग यानी यूपीएससी होगा, जो केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारियों को नियुक्त करेगा. अनुच्छेद 320 पढ़िए –
rticle 320- Functions of Public Service Commissions. It shall be the duty of the Union and the State Public Service Commissions to conduct examinations for appointments to the services of the Union and the services of the State respectively.
यहाँ ये सवाल अति प्रासंगिक है कि ऐसे में सरकार यूपीएससी को बाइपास करके और बगैर किसी परीक्षा और आरक्षण के अफसरों को सीधे नीतिगत पदों पर नियुक्त कैसे कर सकती है? यह मामला जटिल है और बहुत बड़ा मामला है. आम जनता को इसे समझाना होगा ताकि वह सरकार पर दबाव डालने के लिए आगे आ सके. यह काम समाज के प्रबुद्ध यानी पढ़े-लिखे लोगों का है. अगर आज सरकार ज्वायंट सेक्रेटरी की नियुक्ति बिना परीक्षा और बिना आरक्षण के कर ले गई, तो आगे चलकर क्या हो सकता है, इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है.
शातिर दिमाग बीजेपी-आरएसएस आरक्षण खत्म करने की घोषणा कभी नहीं करेगी. वह ऐसे ही शातिर तरीके से आरक्षण को बेअसर कर देगी. यदि अब भी एस सी, एस टी और ओबीसी के लोग सामाजिक स्तर पर एकजुट न हुए तो भावी परिणाम बहुत ही भयंकर और कष्टकारी होंगे. भाजपा का मानना है कि भाजपा ने आरक्षण को नही हटाने की बात कहकर एस सी , एस टी, ओबीसी आदि आरक्षित वर्ग के वोट तो पक्के कर ही लिये हैं, अब उन्हें केवल नारों के बल पर बहलाया-फुसलाया जाना काफी आसान है….. शायद भाजपा इस सोचकर मुंगेरी लाल के जैसे सुनहरे सपने देख रही है. फिर भी, यहाँ मुझे अपना ही एक शेर याद आ रहा है –
देखकर वादों की माला मालिकों के हाथ में,
भुखमरों की मांग में सिन्दूर सा भर जाता है.
लेखक: तेजपाल सिंह तेज (जन्म 1949) की गजल, कविता, और विचार की कई किताबें प्रकाशित हैं- दृष्टिकोण, ट्रैफिक जाम है, गुजरा हूँ जिधर से आदि ( गजल संग्रह), बेताल दृष्टि, पुश्तैनी पीड़ा आदि (कविता संग्रह), रुन-झुन, खेल-खेल में आदि ( बालगीत), कहाँ गई वो दिल्ली वाली ( शब्द चित्र), दो निबन्ध संग्रह और अन्य. तेजपाल सिंह साप्ताहिक पत्र ग्रीन सत्ता के साहित्य संपादक, चर्चित पत्रिका अपेक्षा के उपसंपादक, आजीवक विजन के प्रधान संपादक तथा अधिकार दर्पण नामक त्रैमासिक के संपादक रहे हैं. स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त होकर आप इन दिनों स्वतंत्र लेखन के रत हैं. हिन्दी अकादमी (दिल्ली) द्वारा बाल साहित्य पुरस्कार ( 1995-96) तथा साहित्यकार सम्मान (2006-2007) से सम्मानित किए जा चुके हैं.
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