कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी चाहते थे कि महाराष्ट्र में उनकी पार्टी का गठबंधन दलित नेता प्रकाश आंबेडकर की पार्टी के साथ हो जाए, लेकिन कांग्रेस की लेटलतीफी और आंबेडकर की बड़ी मांगों के सामने न झुकने की नीति ने उसे काफी नुकसान पहुंचाया. आंबेडकर और असदुद्दीन ओवैसी के गठबंधन ने राज्य में कांग्रेस-राकांपा गठबंधन को करीब 15 सीटों पर भारी नुकसान पहुंचाया.
प्रकाश आंबेडकर ने हैदराबाद के नेता असदुद्दीन ओवैसी के साथ मिलकर वंचित बहुजन आघाड़ी का गठन किया और राज्य की सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए. यह गठबंधन पूरी मजबूती से लड़ा और 40 लाख से ज्यादा वोट खींच ले गया जिसके कारण कांग्रेस को करीब छह, राकांपा को दो और उनके सहयोगी दल स्वाभिमानी शेतकरी संगठन को दो सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा.
वंचित बहुजन आघाड़ी का नुकसान औरंगाबाद में शिवसेना को भी उठाना पड़ा, जहां उसके दिग्गज नेता चंद्रकांत खैरे चुनाव हार गए और वंचित बहुजन आघाड़ी के उम्मीदवार एमआइएम विधायक इम्तियाज जलील 3,89,042 मत पाकर जीत गए. इस सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार चौथे स्थान पर जा पहुंचा. आंबेडकर की वंचित बहुजन आघाड़ी को करीब आधा दर्जन सीटों पर डेढ़ लाख से ज्यादा और लगभग इतनी सीटों पर एक लाख से ज्यादा वोट मिले. 50 हजार से अधिक मत तो उसे कई सीटों पर हासिल हुए. आंबेडकर खुद सोलापुर और अकोला दो सीटों से चुनाव लड़े थे.
सोलापुर में कांग्रेस उम्मीदवार पूर्व गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे की हार का कारण आंबेडकर को 1,70,007 वोट मिलना रहा . यहां जीत हुई भाजपा उम्मीदवार डॉ. जय सिद्धेश्र्वर महास्वामी की. अकोला सीट पर भी प्रकाश को 2,78,848 वोट मिले. यहां वह भाजपा उम्मीदवार संजय धोत्रे की जीत में मददगार साबित हुए. नांदेड़ में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण की हार में भी वंचित बहुजन आघाड़ी की भूमिका महत्वपूर्ण रही.
माना जा रहा है कि आंबेडकर ने लोकसभा चुनाव में अपनी ताकत दिखाकर कुछ ही महीनों बाद होने जा रहे विधानसभा चुनावों के लिए अपनी जमीन तैयार कर ली है. अब कांग्रेस-राकांपा को विधानसभा चुनाव के लिए अपना नया गठबंधन बनाते समय कई बार सोचना पड़ेगा. हालांकि आंबेडकर की मांग बड़ी होती है.
लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने कांग्रेस से जितनी सीटों की मांग की थी, उतनी देकर तो कांग्रेस-राकांपा के लिए भी कुछ नहीं बचता, लेकिन आंबेडकर को गठबंधन से बाहर रखकर विधानसभा चुनाव लड़ना इन दलों को और भारी पड़ सकता है. माना जा रहा है कि कांग्रेस-राकांपा इस बार आंबेडकर के सारे नखरे उठाने को तैयार रहेगी.