वाराणसी। साल 2014 में जब मोदी ने अपने जीवन का पहला लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए काशी यानि वाराणसी को चुना तो वहां के लोगों में बहुत उत्साह था. यह कह कर कि मुझे यहां मां गंगा ने बुलाया है, मोदी ने बनारसियों का दिल जीत लिया था. तब मोदी ने यह भी वादा किया था कि वो काशी को क्योटो बना देंगे यानि शहर का विकास करेंगे. पिछले चार साल में ऐसा कुछ नहीं हो सका. काशी जैसे थी, वैसे ही बनी रही. लोगों को मोदी से शिकायत तो थी, लेकिन उनके खिलाफ गुस्सा नहीं था. लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव के पहले मोदी ने जो काम किया है, उससे बनारस में लोगों का गुस्सा फूट पड़ा है.
दरअसल आज 8 मार्च को पीएम मोदी वाराणसी में थे. इस दौरान उन्होंने कई योजनाओं की सौगात देते हुए अपने ड्रीम प्रोजेक्ट काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की नींव रखी. इस मौके पर मोदी ने कहा कि वर्षों से बाबा विश्वनाथ बंधे हुए थे, सांस भी नहीं ले पा रहे थे, लेकिन आज इस काम से उन्हें मुक्ति मिलेगी. करोड़ों हिन्दुओं की आस्था के केंद्र विश्वनाथ मंदिर को मुक्त करने के पीएम मोदी का यह बड़बोलापन बनारसियों को रास नहीं आ रहा है, और मोदी के इस बयान के खिलाफ वहीं के लोगों ने मोर्चा खोल दिया है. खबर आज तक में प्रकाशित हुई है. उसी आज तक में जिसके ग्रुप के एक कार्यक्रम में पीएम मोदी पहुंचे थे और दोनों ने एक-दूसरे की तारीफों के पुल बांधे थे.
दरअसल काशी को क्योटो बनाने के चक्कर में यहां सैकड़ों मंदिर जमींदोज किए जा चुके हैं. संकटमोचन मंदिर के महंत विशंभरनाथ मिश्र का कहना है- ‘भगवान शंकर सबको मुक्त करने वाले हैं ऐसे में कोई उन्हें मुक्त करने की बात करे ये अनुचित है. इससे मैं बेहद आहत हूं. बनारस की जीती जागती संस्कृति को ढहा कर उस पर विकास की इमारत खड़ी की जा रही है. यह लाखों लोगों की आस्था से खिलवाड़ है.‘
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की जद में आने वाले इन प्राचीन मंदिरों, देव विग्रहों की रक्षा के लिए आंदोलन करने वाले शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद भड़के अंदाज में मोदी के खिलाफ हल्ला बोलते हैं, उनका कहना है- ‘काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण के लिए जितने मंदिर तोड़े गए उतने औरंगजेब ने भी नहीं तोड़े. अगर प्रधानमंत्री का अर्थ है कि मैंने इन्हें मुक्त कराया तो सही ही है क्योंकि उन्होंने इन देव विग्रहों को उनके प्राण से मुक्त करा दिया. प्रधानमंत्री बताएं किसके कब्जे से मुक्त कराया? काशी में जो हुआ है वो अकल्प्य है. जिन देवी देवताओं के दर्शन के लिए लोग पूरे भारत से आते हैं वे उन्हें ना पाकर कैसा महसूस करेंगे.‘
मोदी काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की जिस योजना का ढिंढ़ोरा पीट रहे हैं, उसकी जद में आने वाले क्षेत्र को बनारस में पक्का महाल कहा जाता है. यह क्षेत्र गंगा तट पर अस्सी से राजघाट तक फैला है. बनारस का यह इलाका खुद में कई संस्कृतियों को समेटे हुए है. अलग-अलग राज्यों के रियासतों की प्राचीन इमारत व वहां पूजे जाने वाले पौराणिक मंदिर और देव विग्रह इसी क्षेत्र में स्थित हैं. इनके दर्शन करने पूरे देश से लोग आते हैं. काशी के लोग सवाल उठाते हैं कि जब यही नहीं रहेगा तो बनारस की संस्कृति आखिर बचेगी कैसे?
काशी के लोगों में जिस तरह का गुस्सा है, उसे देखते हुए अगर 2019 में मोदी यहां से चुनाव लड़ते हैं तो संभव है कि जिस संत समाज और बनारसियों ने 2014 में मोदी का स्वागत किया था, 2019 में वही उन्हें नकार कर वापस गुजरात भेज दें.
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