मनुवाद की गोद में बैठकर राजनैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक वैद्यता खो चुके रामदास अठावले द्वारा बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्षा एवं उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी सुश्री मायावती जी द्वारा बौद्ध धर्म न ग्रहण किए जाने के सवाल को उठाना एक भद्दा मजाक सा लगता है. और यह नितांत राजनीति से प्रेरित और मीडिया एवं राजनैतिक विरोधियों की अनैतिक सांठ गांठ है, वरना दलितों की बात को मीडिया फोटो के साथ प्रथम पृष्ठ पर कब छापता है. और दूसरी तरफ टीवी चैनल कब बहस में लाते हैं. यद्यपि उसी का अनुसरण करते हुए मायावती जी स्वयं प्रेस कांफ्रेंस कर यह घोषित कर चुकी हैं कि वह करोड़ों अनुयायियों के साथ दीक्षा लेंगी. फिर भी यहां यह बताना समिचिन होगा कि बाबासाहेब अम्बेडकर ने अपने राजनैतिक जीवन के उदाहरण से अपने अनुयायियों को यह समझाया था कि धर्म और राजनीति को कभी भी मिलाकर न देखा जाए. अर्थात धर्म और राजनीति को अलग-अलग ही रखा जाए.
इसी का अनुसरण करते हुए मान्यवर कांशीराम ने जब पहले बामसेफ और फिर बसपा बनाई तो उन्होंने इसे धर्म से बिल्कुल अलग रखा और 1981 में बुद्धिस्ट रिसर्च सेंटर बनाकर उसे नेपथ्य में छोड़ दिया ताकि धर्म और राजनीति कहीं मिल ना जाएं. परंतु उन्होंने अपनी पूरी राजनीति में बुद्ध धम्म की विचारधारा को कभी नेपथ्य में नहीं धकेला. और मान्यवर कांशीराम ने यह प्रण किया था कि बाबासाहेब के धम्म पक्कतन के 50 वर्षों बाद 2006 में उत्तर प्रदेश में करोड़ों लोगों के साथ बुद्ध धम्म ग्रहण करुंगा. पर अफसोस की तिथि आने से पहले ही उनका महापरिनिर्वाण हो गया.
ऐसी स्थिति में सुश्री मायावती ने भी बाबासाहेब और कांशीराम की राजनीति को आगे बढ़ाते हुए धम्म और राजनीति को कभी नहीं मिलाया. और इसीलिए उनकी चार बार की सरकार में सांप्रदायिकता कभी भी अपना फन नहीं उठा पाई. इन सबके बावजूद भी मायावती जी ने अपनी सरकारों के अंतर्गत उत्तर प्रदेश में भगवान गौतम बुद्ध की स्मृति में अनेक कार्य करवाएं. सर्वोपरि भारत में अगर किसी प्रांत में कोई जिला तथागत बुद्ध के नाम पर मिलता है तो वह है उत्तर प्रदेश. जहां पर गौतम बुद्ध नगर की स्थापना हुई है. उसी गौतम बुद्ध नगर में विश्वस्तरीय गौतमबुद्ध विश्वविद्यालय का भी निर्माण हुआ है. इसके अलावा तथागत गौतम बुद्ध के नाम से बसपा सरकार ने महामाया नगर का भी निर्माण करवाया था, परंतु राजनैतिक विरोधियों ने वह नाम बदल दिया. परंतु सुश्री मायावती जी ने भगवान बुद्ध की माता के नाम से अत्यंत जनकल्याणकारी योजना यथा महामाया गरीब आर्थिक मदद योजना तथा महामाया गरीब बालिका आशीर्वाद योजना का आरंभ किया. इसी कड़ी में अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान, लखनऊ तथा बौद्ध परिपथ का विकास एवं सौन्दर्यीकरण करवाया. सर्वोपरि अंतरराष्ट्रीय फार्मूला-1 का रेस सर्किट का नाम भगवान बुद्ध के नाम पर बुद्धा सर्किट रखा गया.
सुश्री मायावती के उपरोक्त कृत्यों से यह प्रमाणित होता है कि यद्यपि उन्होंने सार्वजनिक तौर पर पंचशील और त्रिशरण ग्रहण कर बौद्ध धम्म को नहीं अपनाया है, फिर भी वह किसी भी बौद्ध अनुयायि से कम नहीं दिखाई देती. उनके हर कार्यक्रम में पूज्य भंतों द्वारा त्रिशरण एवं पंचशील से ही शुरू होते हैं. इन सब तथ्यों के बावजूद हमें यहां यह समझना होगा कि केवल दीक्षा लेने मात्र से ही कोई बौद्ध धर्म में परिवर्तित नहीं होता. बौद्ध धम्म एक जीवन जीने का आचरण है. अगर कोई व्यक्ति त्रिशरण, पंचशील, आष्टांगिक मार्ग एवं दसों परिमिताओं का आचरण करता है, तो वह बौद्ध धम्म का आचरण करता है. इसका तात्पर्य यह हुआ कि वह बौद्ध धम्म का अनुयायी है. बुद्ध ने स्वयं गृहस्थ होते हुए भी धम्म की राह पर चलने की कला को बताया.
प्रो. (डॉ.) विवेक कुमार प्रख्यात समाजशास्त्री हैं। वर्तमान में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ सोशल साइंस (CSSS) विभाग के चेयरमैन हैं। विश्वविख्यात कोलंबिया युनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर रहे हैं। ‘दलित दस्तक’ के फाउंडर मेंबर हैं।