नई दिल्ली। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद कांग्रेस पार्टी में ख़ुशी की लहर है, तो भारतीय जनता पार्टी के कैंप में निराशा है.
छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस सरकार बनाने जा रही है. हालांकि मध्य प्रदेश में कड़ा मुक़ाबला रहा और कांग्रेस बहुमत से कुछ दूर रह गई, लेकिन निर्दलीय, बसपा और सपा के समर्थन के बाद वहाँ भी सरकार बनाने का रास्ता साफ़ हो गया है.
इन विधानसभा चुनाव के नतीजे राहुल गांधी और कांग्रेस के साथ-साथ नरेंद्र मोदी और भाजपा के लिए क्या मायने रखते हैं? वरिष्ठ पत्रकार संजीव श्रीवास्तव बताते हैं कि मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी की लोकप्रियता में कमी आई है.
वे कहते हैं, “नरेंद्र मोदी आज भी इस देश के सबसे बड़े नेता हैं. लेकिन जब उनकी लोकप्रियता अपने चरम पर थी तो बीजेपी का कुल वोट शेयर 31 फीसदी था. अब साढ़े चार साल बाद उनकी लोकप्रियता में काफ़ी कमी आई है. ज़मीन पर लोग सवाल पूछते हैं कि मोदी जी ने जो वादे किए थे उनका क्या हुआ.”
“2013 से 2017 तक भारतीय राजनीति में मोदी की टक्कर का कोई नेता नहीं था. लेकिन आज उनसे ये ख़िताब छिन गया है. चुनाव जिताऊ नेता वाली उनकी छवि को धक्का लगा है. ये तो साफ है कि लोगों का मोदी से मोहभंग हो रहा है लेकिन आगामी संसदीय चुनाव में मतदान पर इसका क्या असर पड़ेगा ये तो वक़्त ही बताएगा.”
इन चुनावी नतीजों से एक सवाल ये भी उठता है कि क्या अब बीजेपी में मोदी विरोध के स्वर उभरना शुरू होंगे.
इस सवाल पर संजय श्रीवास्तव ने कहा, “बीजेपी में मोदी के ख़िलाफ़ आवाज़ें अभी उठना शुरू नहीं होंगी. लेकिन बीजेपी में एक धड़ा ऐसा भी है जो कि उस दिन का इंतज़ार कर रहा है कि अगले लोकसभा चुनाव में मोदी-शाह की जोड़ी 170 लोकसभा सीटों पर सिमट जाती है तो मोदी जी सहयोगी दलों को कैसे जुटा पाएंगे. लेकिन ये भी संभव है कि मोदी और अमित शाह में चुनावी गणित के चक्कर में थोड़ी विनम्रता आ जाए.”
राहुल गांधी ने बीते साल 11 दिसंबर, 2017 को कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद की कमान संभाली थी.
संजीव श्रीवास्तव कहते हैं कि इसके ठीक एक साल बाद आए चुनावी नतीजों ने बता दिया है कि राहुल गांधी परिपक्वता से फैसले लेने के लिए सक्षम हैं.
बीबीसी हिन्दी के फ़ेसबुक लाइव के दौरान उन्होंने कहा, “लेकिन कई विपक्षी दलों ने अभी तक राहुल गांधी को अपने नेता के रूप में स्वीकार नहीं किया है. कई दलों के नेता निजी बातचीतों में बताते हैं कि राहुल गांधी व्यक्ति तो बेहतरीन हैं लेकिन उनके अंदर वोट हासिल करने की क्षमता नहीं है.”
ऐसे में सवाल उठता है कि इन विधानसभा चुनावों के नतीजों के राहुल गांधी के लिए क्या मायने हैं.
बीबीसी संवाददाता सरोज सिंह ने जब वरिष्ठ पत्रकार स्मिता गुप्ता से यही सवाल पूछा तो उन्होंने कहा, “राहुल गांधी ने पांच में से तीन राज्यों में अच्छा प्रदर्शन किया है. इससे कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल काफ़ी बढ़ जाएगा. चुनावी रणनीति की बात करें तो राहुल गांधी ने इन चुनावों में दो तरह की रणनीति को अपनाया है.”
“राहुल की रणनीति में एक चीज साफ़ दिखाई दी है कि हिन्दी भाषी प्रदेशों में कांग्रेस पार्टी ने अकेले ही चुनाव लड़ा. कांग्रेस ने बसपा, समाजवादी पार्टी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी जैसे दलों के साथ समझौता नहीं किया जिससे सपा-बसपा काफ़ी नाराज़ हैं.”
“कांग्रेस ने ये सोचा कि ये राज्य कभी उसके गढ़ हुआ करते थे. ऐसे में एक शक्ति परीक्षण करना चाहिए. कांग्रेस की इस रणनीति का एक पहलू ये भी है कि कांग्रेस ने तेलंगाना में टीडीपी और एक अन्य दल के साथ गठबंधन किया. इस तरह कांग्रेस ने अलग-अलग चुनावी रणनीतियों का इस्तेमाल किया.”
राहुल का हिंदुत्व कार्ड
गुजरात के चुनाव से लेकर इन चुनावों में भी राहुल गांधी मंदिर-मंदिर जाने के साथ-साथ उन्होंने अपना गोत्र भी बताया.
स्मिता गुप्ता राहुल की इस रणनीति पर बताती हैं, “कांग्रेस ने हिंदी भाषी प्रदेशों में विचारधारा के तौर पर एक नया प्रयोग किया है. 90 के दशक से देश की राजनीति में दक्षिणपंथ प्रवेश कर रहा था. लेकिन कांग्रेस के पास इसकी टक्कर में कुछ नहीं था. बीजेपी भी कांग्रेस को अल्पसंख्यकों की पार्टी कहती आई है. लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस ने खुद को हिंदू बताने से लेकर ब्राह्मण होने पर भी ज़ोर दिया. इस सबके बावजूद कांग्रेस खुद को एक सेकुलर पार्टी बताती है.”
कांग्रेस पार्टी इन चुनावी नतीजों का श्रेय राहुल गांधी के नेतृत्व को देगी कि उनके कुशल नेतृत्व में कांग्रेस मध्य प्रदेश और राजस्थान में शानदार प्रदर्शन कर सकी.
वरिष्ठ पत्रकार संजीव श्रीवास्तव के मुताबिक़, राहुल गांधी को बस इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि उन्होंने मध्य प्रदेश और राजस्थान के कांग्रेस नेतृत्व में आपसी झगड़े को रोकने की भरसक कोशिश की.
वह बताते हैं, “राहुल गांधी ने पार्टी को एकजुट रखा है. हालांकि, खुद के नाम पर वोट बटोरने का करिश्मा अभी भी उनमें नहीं है. लेकिन अब वो दिन लद गए हैं कि कोई राहुल गांधी का मजाक उड़ा सके. क्योंकि राहुल गांधी ने खुद को साबित करके दिखा दिया है.”
स्रोतः बीबीसी हिन्दी

दलित दस्तक (Dalit Dastak) साल 2012 से लगातार दलित-आदिवासी (Marginalized) समाज की आवाज उठा रहा है। मासिक पत्रिका के तौर पर शुरू हुआ दलित दस्तक आज वेबसाइट, यू-ट्यूब और प्रकाशन संस्थान (दास पब्लिकेशन) के तौर पर काम कर रहा है। इसके संपादक अशोक कुमार (अशोक दास) 2006 से पत्रकारिता में हैं और तमाम मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं। Bahujanbooks.com नाम से हमारी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुक किया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को सोशल मीडिया पर लाइक और फॉलो करिए। हम तक खबर पहुंचाने के लिए हमें dalitdastak@gmail.com पर ई-मेल करें या 9013942612 पर व्हाट्सएप करें।