जम्मू कश्मीर को लेकर केंद्र की मोदी सरकार ने ऐतिहासिक फैसला किया है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म करने की घोषणा कर दी है. आज 5 अगस्त को राज्य सभा में अपने एक बयान में अमित शाह ने भारी हंगामे के बीच अनुच्छेद 370 हटाने का प्रस्ताव पेश कर दिया. हालांकि गृह मंत्री ने अपनी घोषणा में अनुच्छेद 370 को पूरी तरह हटाने की बजाय भाग (1) को कायम रखा है. सरकार के नए फैसले के मुताबिक जम्मू कश्मीर अब केंद्र शासित प्रदेश होगा. इसके साथ ही सरकार ने लद्दाख को भी जम्मू-कश्मीर से अलग कर दिया गया है. लद्दाख भी अब अलग केंद्र शासित प्रदेश होगा.
जाहिर है कि यह सरकार का एक बड़ा फैसला है और इस फैसले के बाद तमाम बहस शुरू हो गई है. इस खबर में हम आपको बताएंगे अनुच्छेद 370 से जुड़े तमाम सवालों के जवाब. हम आपको बताएंगे वो इतिहास जिसकी वजह से जम्मू कश्मीर अब तक तमाम अन्य राज्यों से अलग था और उसको विशेष राज्य का दर्जा मिला था.
सबसे पहले बात अनुच्छेद 370 की. आखिर अनुच्छेद 370 है क्या, जिसको लेकर इतना बवाल मचा है. और यह जम्मू कश्मीर को देश का हिस्सा होने के बावजूद देश से अलग कैसे करता है.
दरअसल गोपालस्वामी आयंगर ने अनुच्छेद 306-ए का प्रारूप पेश किया था. बाद में यही अनुच्छेद 370 बनी. इस अनुच्छेद के तहत जम्मू-कश्मीर को अन्य राज्यों से अलग अधिकार हासिल हुआ. 1951 में राज्य को संविधान सभा अलग से बुलाने की अनुमति दी गई. नवंबर 1956 में राज्य के संविधान का काम पूरा हुआ और 26 जनवरी 1957 को राज्य में विशेष संविधान लागू कर दिया गया.
जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 लागू होने के बाद यहां कई चीजें भारत के अन्य राज्यों से अलग हो गई. एक नजर इस पर भी डालते हैं-
Ø अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार देता है. इसके मुताबिक, भारतीय संसद जम्मू-कश्मीर के मामले में सिर्फ तीन क्षेत्रों-रक्षा, विदेश मामले और संचार के लिए कानून बना सकती है. इसके अलावा किसी कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र सरकार को राज्य सरकार की मंजूरी चाहिए होती है.
Ø संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत 35A जोड़ा गया था जिसकी वजह से जम्मू कश्मीर के लोगों को दोहरी नागरिकता हासिल होती थी.
Ø अनुच्छेद 370 की वजह से जम्मू कश्मीर में अलग झंडा और अलग संविधान चलता है.
Ø इसके कारण कश्मीर में विधानसभा का कार्यकाल 6 साल का होता है, जबकि अन्य राज्यों में 5 साल का होता है.
Ø इसके कारण भारतीय संसद के पास जम्मू-कश्मीर को लेकर कानून बनाने के अधिकार बहुत सीमित हैं.
Ø अनुच्छेद 370 के कारण संसद में पास कानून जम्मू कश्मीर में तुरंत लागू नहीं होते हैं. शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार, मनी लांड्रिंग विरोधी कानून, कालाधन विरोधी कानून और भ्रष्टाचार विरोधी कानून कश्मीर में लागू नहीं है. इससे यहां ना तो आरक्षण मिलता है, ना ही न्यूनतम वेतन का कानून लागू होता है.
Ø इस अनुच्छेद के कारण जम्मू-कश्मीर पर संविधान का अनुच्छेद 356 लागू नहीं होता है. जिस कारण राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं था.
Ø जम्मू-कश्मीर में बाहर के लोग जमीन नहीं खरीद सकते थे.
Ø जम्मू-कश्मीर में महिलाओं पर शरियत कानून लागू होता था.
Ø जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर ले तो उस महिला की जम्मू-कश्मीर की नागरिकता खत्म हो जाती थी.
Ø जम्मू-कश्मीर में भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं था. और यहां सुप्रीम कोर्ट के आदेश भी मान्य नहीं होते थे.
Ø अनुच्छेद 370 के चलते कश्मीर में रहने वाले पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती थी.
अब हम इस सवाल पर आते हैं कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद अब क्या बदल जाएगा
Ø अनुच्छेद 370 हटने के बाद अब कश्मीर में अलग झंडा नहीं, बल्कि भारतीय तिरंगा फहराएगा.
Ø अब कश्मीर में अलग संविधान नहीं होगा, बल्कि जो संविधान पूरे देश के लिए वही कश्मीर के लिए भी.
Ø अब दोहरी नागरिकता नहीं होगी.
Ø अनुच्छेद 370 हटने के बाद विधानसभा का कार्यकाल 6 साल की बजाय अन्य राज्यों की तरह 5 साल का होगा.
Ø कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद अब कश्मीर में कोई भी जमीन खरीद सकेगा.
अनुच्छेद 370 को हटाने पर जिस तरह से बवाल हो रहा है, ऐसे में यह देखना होगा कि क्या यह आर्टिकल स्थायी था और इसे हटाया नहीं जा सकता था? असल में ऐसा नहीं है.
- Article 370 को हटाने को लेकर संविधान में दो बातें कहीं गई है. पहली बात ये है कि अनुच्छेद 370 को जम्मू कश्मीर विधानसभा की सहमति से संसद हटा सकती है, जबकि दूसरा प्रावधान है कि संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संसद दो तिहाई बहुमत से इसको समाप्त कर सकती है.
- Article 370 और Article 35A को लेकर संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप का कहना है कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 पूरी अस्थायी है और इस बात का जिक्र अनुच्छेद में ही किया गया है. सुभाष कश्यप के मुताबिक अनुच्छेद 368 संसद को संविधान के किसी भी अनुच्छेद में संशोधन करने या उसको हटाने का अधिकार देती है. ये ही अनुच्छेद 370 के बारे में कई गुत्थियां सुलझाता है.
इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा क्यों मिला और अनुच्छेद 370 अस्तित्व में कैसे आया. क्योंकि बिना उस इतिहास को जाने बिना इस पूरे मामले पर राय बनाना आसान नहीं है. इसके लिए हम आपको इतिहास में ले चलते हैं.
तीन जून, 1947 को भारत के विभाजन की घोषणा के समय तमाम राजे-रजवाड़े यह फैसला ले रहे थे कि उन्हें किसके साथ जाना है. उन्हें यह चुनना था कि वह भारत के साथ बने रहना चाहते हैं या फिर भारत से अलग हुए हिस्से पाकिस्तान के साथ जाना चाहते हैं.
उस वक़्त जम्मू-कश्मीर दुविधा में था. 12 अगस्त 1947 को जम्मू-कश्मीर के महाराज हरि सिंह ने भारत और पाकिस्तान के साथ ‘स्टैंड्सस्टिल एग्रीमेंट’ पर हस्ताक्षर किया. इस एग्रीमेंट के मुताबिक महाराजा हरि सिंह ने निर्णय किया कि जम्मू कश्मीर न भारत में समाहित होगा और न ही पाकिस्तान में, बल्कि जम्मू-कश्मीर स्वतंत्र रहेगा. दोनों पक्षों ने इस समझौते को मान लिया लेकिन पाकिस्तान ने इसका सम्मान नहीं किया और उसने कश्मीर पर हमला कर दिया. पाकिस्तान में जबरन शामिल किए जाने से बचने के लिए महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर, 1947 को ‘इन्स्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ पर हस्ताक्षर किया.
इसमें कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा होगा लेकिन उसे ख़ास स्वायत्तता मिलेगी. इसमें साफ़ कहा गया है कि भारत सरकार जम्मू-कश्मीर के लिए केवल रक्षा, विदेशी मामलों और संचार माध्यमों को लेकर ही नियम बना सकती है.अनुच्छेद 35-ए 1954 में राष्ट्रपति के आदेश के बाद आया. यह ‘इन्स्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ की अगली कड़ी थी. ‘इन्स्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ के कारण भारत सरकार को जम्मू-कश्मीर में किसी भी तरह के हस्तक्षेप के लिए बहुत ही सीमित अधिकार मिले थे.
कश्मीरियों के साथ-साथ भारत के तमाम उदारवादी बुद्धिजीवी कहते हैं कि चूंकि जम्मू-कश्मीर भारत में इसी शर्त पर आया था इसलिेए इसे मौलिक अधिकार और संविधान की बुनियादी संरचना का हवाला देकर चुनौती नहीं दी जा सकती है. उनका मानना है कि यह भारत के संविधान का हिस्सा है कि जम्मू-कश्मीर में भारत की सीमित पहुंच होगी.
उनका कहना है कि जम्मू-कश्मीर का भारत में पूरी तरह से कभी विलय नहीं हुआ और यह अर्द्ध-संप्रभु स्टेट है. यह भारत के बाक़ी राज्यों की तरह नहीं है. अनुच्छेद 35-ए ‘इन्स्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ का पालन करता है और इस बात की गारंटी देता है कि जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता बाधित नहीं की जाएगी.
जबकि दूसरा पक्ष जिसमें भाजपा भी शामिल है, का मानना है कि अनुच्छेद 35-ए को संविधान में जिस तरह से जोड़ा गया वो प्रक्रिया के तहत नहीं था. संविधान में अनुच्छेद 35-ए को जोड़ने के लिए संसद से क़ानून पास कर संविधान संशोधन नहीं किया गया था, बल्कि तात्कालिक राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने इसे राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद का यह फैसला विवादित होने की बात कही जाती है. इसी को आधार बनाकर गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म करने की घोषणा कर दी है और अब जम्मू कश्मीर केंद्र शासित राज्य होगा.
हालांकि जैसा कि हमने खबर की शुरुआत में ही बताया था कि अनुच्छेद 370 को पूरी तरह से नहीं हटाया गया है बल्कि गृहमंत्री ने अपनी घोषणा में कहा है कि अनुच्छेद 370 का खंड एक मान्य होगा. दरअसल अनुच्छेद 370 तीन भागों में बंटा हुआ है. जम्मू-कश्मीर के बारे में अस्थाई प्रावधान है; जिसको या तो बदला जा सकता है या फिर हटाया जा सकता है. गृह मंत्री के बयान के अनुसार अनुच्छेद 370 (2) और (3) को ही हटाया गया है, जबकि 370(1) अब भी कायम है. 370(1) के प्रावधान के मुताबिक जम्मू कश्मीर सरकार से सलाह करके राष्ट्रपति के आदेश द्वारा संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों को जम्मू और कश्मीर पर लागू किया जा सकता है. जबकि 370 (3) में प्रावधान था कि 370 को बदलने के लिए जम्मू और कश्मीर संविधान सभा की सहमति चाहिए. अब चूंकि जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू है और अधिकार राज्यपाल के हाथ में है ऐसे में राष्ट्रपति आसानी से राज्यपाल के सलाह से जम्मू कश्मीर में संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों को लागू कर सकती है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि 35A के बारे में यह तय नहीं है कि वह खुद खत्म हो जाएगा या फिर उसके लिए संशोधन करना पड़ेगा. अनुच्छेद 370 को लेकर सरकार का फैसला कश्मीर और देश के लिए सही होगा या गलत यह तो आने वाला वक्त बताएगा.
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विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।