नई दिल्ली। राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव में महागठबंधन के बाद छत्तीसगढ़ का चुनाव सबसे ज्यादा दिलचस्प हो गया है. इस चुनाव में छजकां-बसपा और सीपीआई का महागठबंधन नए सियासी समीकरण बनाने के लिए चुनावी मैदान में ताल ठोक रहा है. यह महागठबंधन राज्य में दो मुख्य विरोधी दलों भाजपा और कांग्रेस का खेल बिगाड़ सकता है. इन तीनों राज्यों में जिस राजनैतिक दल पर सबकी निगाहें टिकी थी वो बहुजन समाज पार्टी है. अब जब साफ है कि बसपा छत्तीसगढ़ में महागठबंधन का सबसे अहम हिस्सा है तो सवाल उठता है कि प्रदेश के विधानसभा के चुनाव में बसपा कहाँ खड़ी है.
सूबे में राजनीतिक समीकरण बहुत तेजी के साथ बन और बिगड़ रहे हैं. कांग्रेस से बगावत कर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने अपनी नई राजनीतिक पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस बनाई थी. इस विधानसभा चुनाव में अजीत जोगी ने बसपा और सीपीआई के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है. महागठबंधन के बीच सीटों के बंटवारे में छजकांं को 55, बसपा को 33 और सीपीआई को 2 सीटें मिली हैं. सभी दलों ने अपने प्रत्याशियों ने नाम की घोषणा कर दी है.
चुनाव विशेषज्ञों का मानना है कि महागठबंधन सूबे में करीब 30 से 35 विधानसभा सीटों पर सीधा असर डाल सकता है. इसकी अपनी वजह भी है. सूबे में सामान्य वर्ग की 51 सीटें, अनुसूचित जनजाति के लिए 29 सीटें और अनुसूचित जाति के लिए 10 सीटें आरक्षित हैं. एसएसी और एसटी वर्ग के लिए आरक्षित सीटों पर महागठबंधन का प्रभाव साफ तौर पर देखा जा सकता है.
एक खास बात प्रदेश में बसपा प्रमुख की बढ़ती सक्रियता भी है. 04 नवंबर को प्रदेश में रैली करने के बाद मायावती 16 और 17 नवंबर को भी प्रदेश प्रवास पर रहेंगी, इस दौरान वे जांजगीर और रायपुर में पार्टी प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार करेंगी. अजीत जोगी से गठबंधन के बाद बसपा की उम्मीदें भी बढ़ी है और वह प्रदेश में तीसरी ताकत बनने को बेताब है. यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रदेश के चुनाव में महागठबंधन कितना असर दिखा पाता है. फिलहाल महागठबंधन ने भाजपा और कांग्रेस की धड़कन को तो बढ़ा ही दिया है.
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