“तुम उनसे असहमत हो और उनकी आलोचना करने का ‘दुस्साहस’ भी करते हो तो पहले वे तुम पर तमाम तोहमत लगायेंगे. इसके बाद भी तुम ख़ामोश नहीं हुए तो वे तुम्हें कोर्ट-कचहरी में उलझायेंगे और इसके बाद भी तुम नहीं झुके तो वे वही करेंगे, जो उन्होंने प्रो. कलबुरगी, दाभोलकर, पनसारे और गौरी लंकेश को रास्ते से हटाने के लिए किया.”
फेसबुक पर यह टिप्पणी वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने लिखी है. जाहिर है पत्रकार और देश का सजग नागरिक होने के कारण इस घटना ने उन्हें व्यथित किया है.
पांच सितंबर को बेंगलुरु में चर्चित और धाकड़ पत्रकार गौरी लंकेश को उनके घर के दरवाजे पर गोली मारकर हत्या कर दी गई. गौरी सांप्रदायिकता और फासीवाद की विचारधारा के खिलाफ लिखने-बोलने वाली एक प्रतिबद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और सजग पत्रकार थीं. वह “लंकेश पत्रिके” नाम से साप्ताहिक पत्र निकालती थीं. इस पत्रिका की नींव गौरी के पिता ने रखी थी और उनके गुजरने के बाद इसे गौरी संभाल रही थीं.
इस हत्या ने पत्रकारिता जगत में खलबली मचा दी है. तमाम बड़े पत्रकारों ने इसकी निंदा की है.
बरखा दत्त ने लिखा है- भारत में हम राम रहीम जैसे फ्राड लोगों को प्रणाम करते हैं और पनसारे, दाभोलकर, कलबुर्गी और गौरी लंकेश जैसे तर्क और सवाल करने वाले लोगों को मार देते हैं.
तो राजदीप सरदेसाई ने हत्यारों को कायर और डरपोक कहा है.
मशहूर गीतकार जावेद अख्तर ने सवाल उठाया है कि “दाभोलकर, पनसारे, कलबुर्गी और अब गौरी लंकेश जैसे एक तरह के लोग मारे जा रहे हैं. किस तरह के लोग इन्हें मार रहे हैं?”
हद तो यह है कि कुछ लोगों ने लंकेश की हत्या को जायज ठहराया है. इसमें से कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिसे देश के प्रधानमंत्री तक फॉलो करते हैं. जरा इनके भीतर भरे जहर को यहां पढ़िए.
ऐसे लोगों की खबर वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ ने ली है. पहले ऐसी घटनाओं पर जहर उगलने वालों को आगाह करने के बाद विनोद दुआ ने लिखा है कि “ बिना आपका बायो देखे, मैं समझ गया था कि आपको हमारे प्रधानमंत्री जरूर फॉलो करते होंगे.”
इस घटना पर वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश के ही उपर लिखे कमेंट का आधा हिस्सा भारत के लोगों से सवाल कर रहा है. उर्मिलेश लिखते हैं,
एक समय जर्मनी, इटली सहित दुनिया के अनेक मुल्कों में यह आफत आई. पर लोगों ने उसके खिलाफ लड़ाई लड़ी. और अंततः जीती. भारत को भी लड़ना होगा. और कोई विकल्प नहीं!
सवाल उठता है कि भारत में पनसारे, कलबुर्गी, दाभोलकर गौरी लंकेश और इन जैसे आवाज उठाने वाले तमाम लोगों के लिए देश कब आवाज उठाएगा.
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।