बसपा प्रमुख मायावती ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि वह न तो एनडीए में जाएंगी और न ही इंडिया गठबंधन में। इसके बाद अब दो सवाल सामने है। पहला, बहनजी के इस फैसले से दोनों गठबंधनों में से किसे फायदा होगा और किसे नुकसान। दूसरा, बसपा का यह फैसला कितना सही है।
दरअसल बसपा प्रमुख मायावती ने कभी नहीं कहा कि वो किसी गठबंधन के साथ जाएंगी। लेकिन पिछले कुछ दिनों से मीडिया का एक तबका यह खबर चला रहा था कि मायावती इंडिया गठबंधन में जा सकती हैं और उनकी बातचीत हो रही है। और उन्होंने 40 सीटों की अपनी शर्त रख दी है। जिसके बाद बहनजी को एक बार फिर सामने आकर साफ शब्दों में इससे इंकार करना पड़ा। और साफ करना पड़ा कि बसपा चार राज्यों के विधानसभा और फिर 2024 में लोकसभा चुनाव मैदान में अकेले ही जाएंगी।
लेकिन यहां एक सवाल यह भी है कि क्या इंडिया गठबंधन यह चाहता था कि मायावती गठबंधन में शामिल हों? क्योंकि जब गठबंधन को लेकर पहली बैठक आयोजित की गई तो उसमें बहुजन समाज पार्टी को न्यौता तक नहीं दिया गया। यानी साफ है कि इंडिया गठबंधन में शामिल पार्टियां और नेता भी बसपा को गठबंधन में नहीं रखना चाहते थे। ऐसे में यह कहना कि मायावती और बसपा गठबंधन में शामिल नहीं हो रहे हैं, अपने आप में बेतुका सवाल है।
अब सवाल है कि बहनजी के अकेले चुनाव मैदान में जाने से किसे फायदा होगा और किसे नुकसान? यह साफ है कि बसपा और बहनजी के समर्थक किसी भी हालत में भाजपा को वोट नहीं देते हैं। यानी अगर बहनजी को शुरुआत से ही इंडिया गठबंधन में शामिल करने की कोशिश की जाती और बसपा प्रमुख इसके लिए हामी भरती, तो निश्चित तौर पर इंडिया गठबंधन को बसपा के वोट मिलते। यूपी के अलावा यह वोट कमोबेश पूरे देश में मिलते।
यानी बसपा का कोर वोटर बहनजी के साथ रहेगा। वह इंडिया गठबंधन में नहीं जाएगा तो राजनैतिक रुप से भारतीय जनता पार्टी को बसपा की वहज से होने वाला नुकसान नहीं होगा और इंडिया गठबंधन को फायदा नहीं मिलेगा। इसी को आधार बनाकर तमाम विरोधी बसपा को भाजपा की बी-टीम होने का आरोप लगाते रहते हैं।
अपने आज के ट्विट में बहनजी ने इसका भी जवाब दिया है। बसपा प्रमुख मायावती का कहना है कि, वैसे तो बीएसपी से गठबंधन के लिए यहाँ सभी आतुर हैं, किन्तु ऐसा न करने पर विपक्षी द्वारा खिसयानी बिल्ली खंभा नोचे की तरह भाजपा से मिलीभगत का आरोप लगाते हैं। इनसे मिल जाएं तो सेक्युलर न मिलें तो भाजपाई। यह घोर अनुचित तथा अंगूर मिल जाए तो ठीक वरना अंगूर खट्टे हैं, की कहावत जैसी है।
यह तो रही दोनों पक्षों की स्थिति। लेकिन यहां एक बड़ा सवाल यह है कि बसपा का फायदा किसमें है, गठबंधन में, या फिर अकेले रहने में।
निश्चित तौर पर बसपा देश की एक कद्दावर राजनीतिक दल है और देश के कई राज्यों में पार्टी ने अपना दम भी दिखाया है। लोकतंत्र में 20-25 प्रतिशत का वोट बैंक रखने वाली पार्टी को कम कर के नहीं आंका जा सकता है। लेकिन बीते एक दशक में बसपा का ग्राफ लगातार नीचे गया है। इस बीच में सिर्फ बीते लोकसभा चुनाव 2019 में पार्टी तब थोड़ा बेहतर प्रदर्शन कर पाई थी, जब यूपी में सपा और बसपा ने लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ा था। इस एक मौके को छोड़ दें तो बसपा का ग्राफ लगातार गिरा है।
बसपा की राजनीति की बात करें तो वह चुनाव के बाद गठबंधन में यकीन करने वाली पार्टी है। लेकिन 2017 के यूपी चुनाव में 19 सीट जीतने और 22 प्रतिशत वोट हासिल करने वाली बसपा 2022 में एक सीट और 13 प्रतिशत वोट तक नीचे गिर चुकी है।
यानी बसपा का कोर वोटर कहीं न कहीं उससे छिटक रहा है। खास कर गैर जाटव दलित वोटर। चिंता की बात यह है कि आकाश आनंद को युवा चेहरे के रुप में सामने लाने और तेलंगाना बसपा की कमान पूर्व आईपीएस अधिकारी आर.एस. प्रवीण को देने के अलावा मायावती ने बीते सालों में पार्टी को मजबूत करने के लिए कोई खास कदम उठाया हो, ऐसा नहीं दिखता। पार्टी के तमाम पुराने साथी भी बसपा छोड़ चुके हैं या फिर निकाले जा चुके हैं।
ऐसे में बसपा के गठबंधन में शामिल होने या न होने से भले जिसे भी फायदा या नुकसान हो, खुद बसपा के लिए 2024 का चुनाव अस्तित्व की लड़ाई वाला होगा। अगर मायावती इस चुनाव में अपनी घोषणा के मुताबिक अकेले चुनाव लड़ती हैं तो उनके पास संभवतः यह आखिरी मौका होगा; जब वो बसपा को एक बार फिर राजनीतिक के मैदान में खड़ा कर सकें। यह सालों तक बसपा और मायावती के लिए तमाम विपरीत परिस्थियों में लड़ने वाले बसपा समर्थकों के लिए भी जरूरी है।
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।