देश को लाशों के ढेर में तब्दील कर देने के बावजूद भी, वह कौन सा कारण है, जिसके चलते आरएसएस, भाजपा और नरेंद्र मोदी का यह विश्वास डिगा नहीं है कि भारत की जनता का एक बड़ा हिस्सा उन्हें पसंद करता है और यदि पसंद नहीं भी करता है, तो उसके पास कोई और विकल्प नहीं है और भविष्य वे उन्हें वोट देने के लिए वे मना लेंगे। इसके दो बड़े कारण हैं-
1- पहला देश की आबादी के के बड़े हिस्से में मुसलमानों के प्रति घृणा
2- दूसरा अपरकॉस्ट के अंदर दलित-बहुजनों के प्रति घृणा
देश की आबादी एक बड़े हिस्से में मुसलमानों के प्रति घृणा भरने में आरएसएस, भाजपा और नरेंद्र मोदी पूरी तरह कामयाब हुए हैं। अपरकॉस्ट का बहुलांश हिस्सा, पिछड़ों का एक बड़ा हिस्सा और दलितों-आदिवासियों का भी एक छोटा सा हिस्सा मुसलमानों के प्रति घृणा भाव से भरा हुआ है। फिलहाल यही सच है।
यह घृणा मुसलमान, कश्मीर और पाकिस्तान के माध्यम से राष्ट्रवादी होने की शर्त बन चुकी है यानि यह घृणा और राष्ट्रवाद एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं।
आरएसएस-भाजपा और नरेंद्र मोदी ने भाजपा के अतिरिक्त सभी पार्टियों को मुसलमान समर्थक यानि गैर-राष्ट्रवादी हैं, यह स्थापित करने में काफी हद तक सफलता प्राप्त कर ली हैं यानि भाजपा के अलावा किसी को वोट देना ( विशेषकर केंद्र में) राष्ट्र विरोधी होना है।
दूसरा दलितों-पिछड़ों के राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और एक हद तक आर्थिक उभार ने ( विशेषकर आरक्षण के चलते) भारत के अपरकॉस्ट के भीतर एक तीखी प्रतिक्रिया को जन्म दिया है। जिन दलितों-पिछड़ों ( शूद्रों-अतिशूद्रों) को वे अपने पांव की जूती समझते थे, वे उन्हें बराबर के स्तर खड़े होकर चुनौती दे रहे हैं और जीवन के सभी क्षेत्रों में बराबरी की मांग कर रहे हैं और बराबरी हासिल भी कर रहे हैं, इसे स्वीकार करने के लिए भारत के अपरकॉस्ट का बहुलांश हिस्सा तैयार नहीं है। जिसके चलते वह भीतर-भीतर इनके प्रति गहरी नरफरत से भरा हुआ है।
अपरकॉस्ट एक साथ दो घृणाओं से भरा है, एक मुसलमानों के प्रति और दूसरा पिछड़े-दलितों के प्रति। इन दोनों घृणाओं की संतुष्टि सिर्फ और सिर्फ मोदी-योगी जैसे लोग ही कर सकते हैं। पिछड़ों-दलितों के नेतृत्व वाली पार्टियां अपरकॉस्ट को किसी भी शर्त पर स्वीकार नहीं है और कांग्रेस के राष्ट्रवाद और गांधी परिवार की भारतीयता पर भाजपा ने उनके भीतर गहरा शक पैदा कर दिया है।
पिछड़ों का एक बड़ा हिस्सा मुस्लिम विरोध यानि हिंदुत्व की राजनीति में फिलहाल अपनी पहचान खो रहा है, जिसकी संतुष्टि मोदी के नेतृत्व में भाजपा ही कर सकती है।
भारतीयों का एक बड़ा हिस्सा किसी भी सूरत में यह नहीं चाहता है कि लड़कियां अपनी मर्जी से शादी करें या प्रेम करें। यह स्थिति बनाए रखने में आरएसएस-भाजपा उनकी बेहतर तरीके मदद कर रहे हैं और करते रहेंगे। लव जेहाद रोकने के लिए कानून इसी दिशा में उठाए गए कदम हैं। यह एक तीसरा तत्व है, जो भारतीयों के एक बड़े हिस्से को भीतर-भीतर आरएसएस-भाजपा और मोदी-योगी के साथ खड़ा कर देता है।
कार्पोरेट जगत के एक हिस्से का खुला समर्थन तो भाजपा को है ही, विशेषकर पैसा और मीडिया के माध्यम से ।
आरएसएस-भाजपा और नरेंद्र मोदी भीतर-भीतर आश्वस्त हैं कि मुसलमानों और दलितों-पिछड़ों से घृणा करने वाला अपरकॉस्ट और मुसलमानों के प्रति घृणा और हिंदुत्व में अपनी पहचान खोज रहा पिछड़े वर्ग का एक बड़ा हिस्सा आखिर जाएगा, तो जाएगा कहां, कुछ भी हो जाए, उसे आरएसएस-भाजपा और नरेंद्र मोदी के पास ही आना पड़ेगा।
यही वह आधार है, जिसके बूते मोदी समर्थक यह कह रहे हैं कि आखिर आएगा मोदी ही।
इसका उत्तर रामपट्टी, गाय पट्टी और हिंदू पट्टी को पेरियार पट्टी, नानक पट्टी और अय्यंकाली पट्टी में बदल कर ही दिया जा सकता है, इस पर विस्तार से बाद में।”
बहुत बढिया बात कही है आपने सर। दलित और पिछड़े लोगों में से काफी हिस्सा हिदुत्व से जुड़ा है। हिंदू मुस्लिम संघर्ष में इन दलितों को ढाल की तरह इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन उन्हें समझ मे नहीं आता.धर्म की लडाई हमारी लड़ाई है यह बात उनके तन मन मे बिठाने में आरएसएस और बीजेपी कामयाब रहा है। लेकिन इस बार उन्हें हर का मुंह देखना पड़ सकता है।