भारत में योग का शिक्षा,खेल-कूद, पर्यावरण की शिक्षा,कम्प्यूटर की शिक्षा अनिवार्य कर दी गई या किया जा रहा है,ऐसे में में सेक्स एजुकेशन (यौन शिक्षा) अनिवार्य क्यूँ नहीं किया जा रहा है, यह समझ से परे हैं. इससे पहले यूपीए की सरकार में यौन शिक्षा को हाई/हायर सेकेन्डरी स्कूल के पाठ्यक्रम में अनिवार्य रूप से शामिल करने को लेकर संसद में बिल लाया था. लेकिन उस समय के तत्कालीन विपक्षी दल जो वर्तमान में सत्ता में काबिज है भाजपा (एनडीए) ने इस शिक्षा की अनिवार्यता को लेकर विरोध हुआ था जिसके कारण आज तक यौन शिक्षा अनिवार्य रूप से नहीं पढ़ाया जाता है. इतना भी नहीं अभी तक सेलिबस तक नहीं बन पाया है.
यौन को लेकर भारत जैसे बीमारू राज्य में शिक्षा के रूप में अनिवार्य नहीं होना एक शर्मनाक बात है. आजकल यहाँ आए दिन बलात्कार, यौन हिंसा को लेकर खबरों को देखते व सुनते हैं. हमारे साथ हमारे घर व समाज के लोग ऐसी खबरों को देख सुन हर दिन पल-पल शर्मसार हो रहें हैं. इसके बावजूद इसे रोकने को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है. केवल बलात्कारी को कड़े से कड़े सजा देने को लेकर कानून बनाया जा रहा है. यह तो वैसे ही बात हुई जैसे पेड़ की पत्ती का पीला होने के कारण पत्ती को तोड़ देना . बजाय उसके की उस पीलेपन के कारणों की पड़ताल करना.
जब तक हम किसी भी समस्या के कारण को जाने बगैर उसका उपचार शुरू करें तो उसका उल्टा साइड इफेक्ट ही पड़ता है. अपराधी को सजा दे देना यह एक न्यायिक प्रक्रिया है. लेकिन अपराध के कारणों की पड़ताल कर निदान का उपाय सुझाना ही समस्या का समाधान करना है.वास्तव में यही सार्थक काम है.
नेशनल क्राइम रिकार्ड (NCRB) ब्यूरो के मुताबिक सालाना सर्वेक्षण के बाद दिल्ली महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित शहर माना गया है. वहीं मध्य प्रदेश सबसे आगे उसके बाद दूसरे नंबर पर उत्तरप्रदेश तीसरे स्थान पर महाराष्ट्र का स्थान है, बलात्कार के मामले में. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्ययन के अनुसार भारत में 54 वें मिनट में एक औरत के साथ बलात्कार होता है. भारत में 42 महिलाएँ प्रतिदिन बलात्कार का शिकार बनती है.
ऐसे कौन से कारण है जिसके कारण यहाँ बलात्कार की घटना दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है,इस गंभीर मुद्दे को लेकर अनुसंधान करने की जरूरत है. बलात्कार की घटना मानसिकता से जुड़ा हुआ मुद्दा है, दिल्ली जैसे शहर जहां देश के प्रबुद्ध लोग रहते हों देश की राजधानी हों यहाँ सर्वाधिक बलात्कार की घटना हमें विचलित करती है. यह भारतीय समाज का यौन भूख को प्रदर्शित करती हैं, साथ ही समाज का एक वास्तविक फीडबैक भी है .
वहीं भारत में रह रहें आदिवासी समुदाय की संस्कृति की बात करें तो इनकी संस्कृति में यौन शिक्षा प्रचलित हैं. वयस्क होते ही समाज द्वारा यौन शिक्षा दी जाती हैं. बस्तर में मुरिया, माड़िया आदिवासी समुदाय में गोंटुल वयवस्था है, यहाँ वयस्क युवक -युवतियाँ गोंटुल में जाकर सामाजिक जिम्मेदारियों की जानकारी लेते हैं, साथ ही यौन शिक्षा भी यहाँ दी जाती है. यहाँ आने वाले युवक -युवती अपनी पसंद से वर-वधू का चयन भी करते हैं. इस समुदाय में यौन हिंसा या बलात्कार की घटना देखने सुनने को नहीं मिलती है. वहीं उरांव आदिवासी समुदाय में धूमकुरिया वयवस्था हैं. जहां युवक – युवतियाँ सामाजिक सांस्कृतिक के साथ ही यौन शिक्षा की जानकारी लेते हैं. इस तरह से भारत के आदिवासी समुदाय में यह उन्नत शिक्षा व्यवस्था लागू है. इसका ठीक से मूल्यांकन नहीं होने के कारण व केवल व केवल इसकी व्यवस्था को सेक्स गृह घोषित मुख्य धारा के मीडिया द्वारा दिखाये जाने के कारण व अन्य कारणों के कारण यह महान व्यवस्था नष्ट होने के कगार पर खड़ी है.
हमारे आदिवासी समुदाय के पास मौजूद इस माडल से प्रेरणा लेते हुए इस वयवस्था को हमें लागू करना चाहिए, तभी भारत जैसे बीमारू राज्य का उचित उपचार होगा. भारत सेक्स को बंद व्यवस्था का रूप दे दिया गया है. फलत: यह आज भी बंद ही रह गया इसी बंद पड़े दरवाजे को भी लोग खोलना चाहते हैं. इसके लिए उचित शिक्षा व व्यवस्था के साथ इस मुद्दे पर बातचीत करना होगा. यौन विषय को सहज बनाना होगा. इस विषय पर बातचीत का सभी माध्यम खुला करना होगा. पाठ्यक्रम के सेलिबस से लेकर समाज में सहज ढंग से बातचीत का माहौल बनाने होंगे,इसके लिए हमें तैयार होना चाहिए, सरकार को इस गंभीर मुद्दे को लेकर गंभीरता से सोचना होगा,अतएव स्कूली पाठ्यक्रमों में शामिल करना होगा.
नरेश कुमार साहू
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