साल 2007 में पहली बार चमकौर साहिब विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक चुने जाने वाले 58 साल के चरणजीत सिंह चन्नी ने जब 20 सितंबर 2021 को पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी तो उसकी काफी चर्चा हुई थी। यह एक ऐतिहासिक क्षण था क्योंकि दलितों की सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य पंजाब को पहला दलित मुख्यमंत्री मिला था। हालांकि इसे कांग्रेस का चुनावी स्टंट कहा गया, और नवजोत सिंह सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर सिंह के विवाद को देखते हुए वंचित समाज के नेता को पंजाब की कमान देकर मामले को निपटाने की कोशिश के रूप में माना गया। लेकिन इससे इस बात की अहमियत कम नहीं हो जाती कि पंजाब की राजनीति में ये एक ऐतिहासिक घटना है।
इस बीच 20 अक्टूबर को चरणजीत सिंह चन्नीा की सरकार के एक महीने पूरे हो गए। हालांकि 30 दिनों में किसी के काम की समीक्षा करना एक ज्यादती मानी जाएगी, लेकिन यह देखना तो बनता है कि इन एक महीने के बाद चरणजीत सिंह चन्नी कहां खड़े हैं।
अगर मुख्यमंत्री के रूप में चरणजीत सिंह चन्नी के एक महीने के काम-काज की बात करें तो उन्होंने 4 ऐसे बड़े फैसले किये, जिसकी काफी चर्चा हुई। लेकिन इस बीच यह भी साफ दिखा कि एक दलित मुख्यमंत्री के लिए काम करना आसान नहीं होता है और उसके आस-पास के लोग ही उसकी राह में रोड़े अटकाते हैं।
हाल ही में अपने बेटे की शादी के समारोह को बिल्कुल सादे तरीके से आयोजित करने के कारण भी चन्नी की काफी तारीफ हुई। सीएम खुद गाड़ी चलाकर गुरुद्वारा पहुंचे, जहां उनके बेटे का विवाह कार्यक्रम हो रहा था। इस बीच अपने एक महीने के कार्यकाल में मुख्यमंत्री चरणजीत चन्नी ने पांच कैबिनेट बैठकें की और इस दौरान चार महत्वपूर्ण फैसले लिए। इन फैसलों में 2 किलोवाट तक के बिजली कनेक्शन वाले उपभोक्ताओं का बकाया बिल माफ करना, पानी के बिल शहरों व ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति माह 50 रुपये करने की घोषणा करना, लाल डोरा के तहत आने वाले लोगों की जमीन का मालिकाना हक उन्हें दिलवाने से लेकर दर्जा चार मुलाजिमों की भर्ती जैसे महत्वपूर्ण फैसले लिए गए। इसकी काफी सराहना हुई। और इससे सबसे ज्यादा लाभ वंचित समाज को मिला। लेकिन वहीं, डीजीपी दिनकर गुप्ता के छुट्टी पर जाने के बाद उनकी जगह इकबाल प्रीत सिंह सहोता को डीजीपी बनाने और विवादित अमरप्रीत सिंह देयोल को एडवोकेट जनरल नियुक्त करने पर विवाद हो गया।
जिस व्यक्ति ने इसकी सबसे कड़ी आलोचना की, वह खुद पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू थे। दरअसल चरणजीत सिंह चन्नी के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही सिद्धू उन्हें अपने इशारे पर नचाना चाहते थे। जिस तरह सिद्धू कभी मुख्यमंत्री का हाथ पकड़कर चल रहे थे, तो कभी उनके कंधे पर हाथ रखकर। उसने सिद्धू की सामंती सोच को सबके सामने ला दिया। यहां तक की एक तस्वीर में सिद्धू गाड़ी में आगे बैठे दिखें, जबकि चन्नी पीछे की सीट पर। लेकिन अपने फैसलों से चन्नी ने साफ कर दिया कि वह रबड़ स्टाम्प बनकर काम करने के लिए तैयार नहीं हैं। सिद्धू इससे तिलमिला गए। यहां तक की सिद्धू मुख्यमंत्री चन्नी के बेटे की शादी में भी शामिल नहीं हुए।
इन एक महीने में चरणजीत सिंह चन्नी के लिए सिद्धू सबसे बड़ी चुनौती बनकर सामने आए हैं। यहां तक की सिद्धू ने मुख्यमंत्री चन्नी से विरोध जताते हुए कांग्रेस अध्यक्ष का पद तक छोड़ दिया था। बीते 17 सितंबर को तो रात को 8 बजे से सुबह 3 बजे तक 7 घंटे तक सिद्धू औऱ चन्नी के बीच बैठक हुई। इसमें सिद्धू ने सोनिया गांधी को भेजे गए 13 सूत्रीय एजेंडे का मुद्दा उठाकर मुख्यमंत्री चरणजीत चन्नी को घेरने की कोशिश की, जिसके बाद नोकझोक बढ़ गई। खबर है कि सिद्धू पर पलटवार करते हुए चन्नी ने मुख्यमंत्री पद छोड़ने की पेशकश कर दी और कहा कि बाकी बचे 60 दिनों के लिए सिद्धू खुद सीएम बन जाएं और ये वादे पूरे कर के दिखाएं।
बीते एक महीने में साफ दिखा की राजनीतिक दल अपने राजनीतिक फायदे के लिए दलित समाज के व्यक्ति को मुख्यमंत्री तो बना देती है, लेकिन उसी पार्टी के नेता जिस तरह से उसे हर कदम पर रोकने की कोशिश करते हैं, वह भारतीय समाज की जातिवादी सोच को उजागर करता है। यही वजह है कि जेएनयू के प्रोफेसर और समाजशास्त्री प्रो. विवेक कुमार स्वतंत्र दलित राजनीति की वकालत करते हैं, जिसकी बानगी बहुजन समाज पार्टी है।
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।