जानलेवा बीमारियों से निपटने के लिए ठोस उपाय क्यों नहीं करती सरकार

आप इसे चमकी बीमारी का नाम दे सकते हैं. डिजीटल युग में थोड़ा हैपनिंग और नया भी लगता है. लेकिन मुद्दे पर मेरी अपनी समझ कहती है कि ये दिमागी बुखार (एक्यूट एंसेफिलाइटिस सिंड्रोम) ही है. 100 नवजातों से ज्यादा दम तोड़ चुके हैं, जनता को गुस्सा तो आएगा ही – ये सोशल मीडिया में नीतीश कुमार और मोदी सरकार को पानी पी – पीकर कोसने और गाली देने से कुछ नहीं होगा. हर साल, इसी मौसम में आपको गुस्सा क्यों नहीं आता? ये बीमारी मुजफ्फरपुर में कोई नई नहीं है. सालाना 100 से ज्यादा नवजातों का यहां मर जाना नया तो नहीं है. हर साल इससे भी ज्यादा बच्चे स बीमारी से मरते हैं. आम लोग इसे चमकी बीमारी कह रहे हैं, डॉक्टर इसे एंसेफिलाइटिस का नाम देते हैं. कई साइंटिस्टों ने यहां तक कहा है कि लीची बागानों के आसपास रहने वाले बच्चे इस संक्रमण से मरते हैं.

क्या मेरे सोशल मीडिया में चीखने या वहां जाकर लोगो की मदद करने से समस्या हल होगी? नहीं, मेरा मानना है कि फिलहाल वहां जाकर कोई मदद भी मददगार नहीं हो सकती. दरअसल, अस्पताल पूरी समस्या के आखिरी पड़ाव पर आता है. बच्चे आखिरकार अस्पतालों में जाकर ही दम तोड़ते हैं इसीलिए स्वास्थ्य विभाग या स्वास्थ्य मंत्रालय पर नाकामी का ठीकरा फोड़ना आसान है. जबकि हकीकत ये है कि मुजफ्फरपुर में कुपोषण, साफ पीने का पानी और मच्छरों का संक्रमण सबसे बड़ी चुनौती है. खबरों में बच्चों के चमकी बीमारी से मरने की खबर तो आ रही है लेकिन कोई भी इस जिले में अति-कुपोषित और कुपोषित बच्चों को लेकर कोई बात नहीं कर रहा. बिहार के ‘सुशासन’ में बच्चों के भूखे रहने की बात कोई करता ही नहीं है. दूसरा इस क्षेत्र में मच्छरों का प्रकोप अन्य जिलों से ज्यादा है. ये एक खास किस्म के मच्छर हैं जो इस बीमारी को बच्चों में पहुंचाने का काम करते हैं.

कमाल की बात यह है कि गोरखपुर में इसी बीमारी से लड़ने के लिए 4000 करोड़ रुपए खर्च करके रिसर्च सेंटर बनाया गया, अस्पतालों में खास विभाग बनाए गए. मच्छरों से निबटने के लिए राज्य और केंद्र सरकार पैसा देती रही है. यहां कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी काम कर रही है. लेकिन इसके उलट मुजफ्फरपुर में सिर्फ केंद्र सरकार की एक टीम हर साल पहुंचती है और अपनी वाहियात सी रिपोर्ट बनाती और सरकार को सौंप देती है. इससे आगे कुछ नहीं.

जरुरत है कि मुजफ्फरपुर में भी कम से कम दो रिसर्च सेंटर बने. कुपोषण से लड़ने के लिए राज्य व केंद्र सरकार परिवारों को अनाज दें. मच्छरों की समस्या से निबटने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय साथ मिलकर काम करे और इन्हें पनपने से रोकें. साफ पीने के पानी का बंदोबस्त किया जाए. बिना इन ठोस कदमों के इस समस्या का निदान नहीं हो सकता.

PS: आमिर खान और प्रसून जोशी को “कुपोषण भारत छोड़ो” ऐड पर 400 करोड़ रुपए लूटा दिया गया. अच्छा होता अगर यही पैसा इन गरीबों को राशन देने में लगा देते.

लेखक- प्रदीप सुरीन वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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