दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) लगातार आन्दोलनरत हैं . हम उनके आन्दोलन का समर्थन करते हैं और हर मार्च या धरने में शामिल होते हैं . सरकार केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में नया रोस्टर लागू करके आरक्षण के संवैधानिक प्रावधान को कमजोर करना चाहती है . यह सरकार का सामाजिक रूप से पिछड़े तबकों के लिए विश्वविद्यालय का दरवाजा बंद करने का एक तरीका है . असल में नवउदारवाद के समर्थकों द्वारा आरक्षण के खिलाफ लगातार मुहिम चलाई जा रही है .अन्ना हजारे जैसे लोग बार-बार आरक्षण ख़त्म करने का आह्वान करते हैं. अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसोदिया जैसे लोग ‘यूथ फॉर इक्वलिटी’ की मार्फ़त आरक्षण ख़त्म करने का आंदोलन चलते रहे हैं. ऐसे माहौल में दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) का आंदोलन सामाजिक न्याय का आन्दोलन विशेष महत्व रखता है . लेकिन डूटा नेतृत्व आरक्षण और सामाजिक न्याय के विरोधी आम आदमी पार्टी के नेताओं को हमेशा डूटा के मंच पर बुला कर सारे संघर्ष को गुमराह करने की कोशिश करता है .
डूटा के निर्वाचित प्रतिनिधि कभी मनीष सिसोदिया से गुहार लगाते दिखाई पड़ते हैं कभी केजरीवाल से . जबकि केजरीवाल और मनीष सिसोदिया दोनों आरक्षण विरोधी और सवर्णवादी हैं. आम आदमी पार्टी में प्रतिक्रियावादी तत्वों की भरमार किसी से छिपी नहीं है. 2006 में केन्द्रीय विश्वविद्यालयों,आईआईटी, मेडिकल कॉलेज, और प्रबंधन संस्थानों में पिछड़ा वर्ग के छात्रों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के सरकार के फैसले का विरोध करने के लिए बने संगठन’यूथ फॉर इक्वलिटी, के गठन, फंडिंग और नेतृत्व में इन दोनों की संलिप्तता जगजाहिर है .
हमारा मानना है कि डूटा के आन्दोलन में विचारधाराहीनता की खुले आम बात करने वाले आम आदमी पार्टी के नेताओं को बुलाना, उनसे गुहार लगाना सामाजिक न्याय के आन्दोलन के साथ अन्याय है. इस तरह की कवायद से सामाजिक न्याय का आन्दोलन और कमजोर होगा .
नीरज
(लेखक सोशलिस्ट युवजन सभा के अध्यक्ष हैं )
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