आज मीडिया (प्रिंट/इलेक्ट्रॉनिक, अखबार, पत्र, पत्रिकाएं, टीवी चैनल, फेसबुक, सोशल मीडिया आदि) की ताकत एटम बम से भी घातक सिद्ध हो चुकि है। डॉ अंबेडकर साहब भी मीडिया की ताकत को भलीभांति समझते थे। डॉ अंबेडकर साहब द्वारा अपने अछूत वर्ग के लोगों के लिए किए जा रहे कार्यों की खबर को भारतीय मीडिया नहीं छापता था। इसीलिए बाबा साहब को अपनी आवाज अपने लोगों तक पहुँचाने के लिए अखबार निकालने पड़े। गांधी जी को प्रख्यात करने और राष्ट्रपिता जैसी अधोषित उपाधि से जन सामान्य में पहचान दिलाने में हिन्दुवादि मीडिया कि अहम भुमिका थी।
मीडिया आज के दौर और भी ताकतवर बनकर उभर रहा है। आज कोई भी राजनीतिक दल मीडिया की मदद के बिना सरकार बना ही नहीं सकता। बहुजन समाज को धार्मिक आडंबरों के चकाचौंध में दिग्भ्रमित करने का काम मीडिया ही करता है। अगर व्यक्ति के पास ज्ञान है, मिशनरी लोग हैं, समाजोत्थान के लिए काम करने वाली संस्थाएं/ संगठन है, लेकिन उनकी बातों, कार्यों की जानकारी समुदाय के लोगों तक पहुंचाने, समझाने के लिए मीडिया नहीं है तो यह समय असमय ही सांसे तोड़ देती हैं।
हमारे अपने इतिहास, महापुरुषों की जानकारी को मनुवादी मीडिया हम तक क्यों पहुंचाएगा? सोचो तो सही?
डॉ अंबेडकर की मेहरबानी से बहुजन समाज का बहुत बड़ा तबका शिक्षित बन रहा है। अभी केवल शिक्षित बना है, लिखने से तो अभी भी बहुत दूर है। जब तक आप अपनी बात लिखोगे नहीं तो अपनी शिक्षा और ज्ञान का दायरा संकुचित ही रहेगा। आजकल अधिकतर युवा वर्ग सोशल मीडिया पर किसी लिखी पोस्ट शेयर कर देता है या फिर ‘जय भीम’ लिखता है या कोई स्माइली कॉपी पेस्ट कर देता है। अपने विचारों की अभिव्यक्ति लिख कर नहीं करता इस पर ध्यान देना होगा।
हमारा शिक्षित वर्ग मीडिया की ताकत को समझने भी लगा है, लेकिन दुख यह है कि वह अपनी स्वयं की भूमिका नहीं निभा रहा है। बहुजन समाज का बहुसंख्यक वर्ग यह गलत फहमी पाले बैठा है कि मनुवादी मीडिया हमारी बातों को जन-जन तक पहुंचाने का काम करेगा।
जब तक हम हमारा अपना मीडिया तैयार नहीं करेंगे जो आर्थिक संघर्ष से छोटे मोटे अखबारों का प्रकाशन कर रहे हैं उनको सपोर्ट नहीं करेंगे तो हम रेंगते हुए ही विकास करेंगे।
हमारे अपने अधिकतर विशेष विशेषज्ञ उच्च पदों पर विराजमान प्रशासनिक अधिकारी बहुजन समाज के प्लेटफार्म पर लेखन नहीं कर रहे हैं। जबकि मनुवादी अधिकारी अपनी लेखनी अपने वर्ग के लिए चला रहे हैं। हमारे अधिकतर उच्च अधिकारी तो सोशल मीडिया पर अपनी फोटो, माला पहने हुए या फिर मनुवादी त्यौहार पर बधाई और शुभकामनाएं देने तक सीमित है। आर्थिक सहयोग भी मनुवादी मीडिया को ही करते देखे गये हैं।
हमें लिखना होगा हमारी आवाज को हमारे लोगों तक पहुंचाना होगा, केवल जय भीम, जय भीम लिखने से उद्देश्य हल नहीं होगा। बाबा साहब ने कहा था कि Pay back to society करना है। इसका मतलब में तन-मन-धन से समाज के लिए योगदान देना है।
हमारे अपने सामाजिक समाचार पत्र हर घर-घर आनी ही चाहिए। क्या आपने अपने घर पर समाजिक समाचार पत्र आता है?
हमें “अपना मीडिया अपनी आवाज” के लिए काम करना ही होगा। यह बोलना बंद करना होगा कि हमारी खबर मनुवादी मीडिया छापता ही नहीं है। अपना मीडिया स्वयं तैयार करो। वक्त की आवाज है। हमारे महापुरुषों इतिहास, संविधान की जानकारी, अपने आधिकारिक, शैक्षणिक जानकारी आदि को लिख-लिख कर अपने सामाजिक समाचार पत्र में प्रकाशित करो। पुस्तकों को प्रकाशित करो। ढोलक-मंजीरे पीटन, प्राण प्रतिष्ठा करने से, जागरण, भंडारा करने से कुछ नहीं होगा। जागरण शिक्षा का करना होगा।
बहुजन समाज के बहुसंख्यक वर्ग जब अपने मीडिया की ताकत के साथ खड़ा हो गया तो फिर बाबा साहब की उंगली के इशारे का टारगेट क्रेक करने में देर नहीं लगेगा। हाँ यह भी काफी हद तक सही है कि हमारे कुछ लोग सामाजिक समाचार पत्र/ अखबार के नाम से हमारे लोगों से पैसा लेकर चंपत हो जाते हैं। इसका प्रभाव मिशनरी संपादकों पर पड़ता है। कोई बात नहीं जो भाग जाते हैं वे भी अपने ही हैं। समाज में सभी तरह के लोग हैं। उनकी भी कुछ परिस्थिति रहती हैं। उनको आत्मग्लानि तो होती ही है। खूब लिखो खूब लिखो बहुजन की ताकत के लिए लिखो।
एक सुझाव:- बहुजन समाज (दलित वर्ग) के लोग जब भी कोई किसी प्रकार का समारोह/ कार्यक्रम/ सम्मान समारोह आदि आयोजित करें तो इनमें समाजिक समाचार पत्र के संपादक, पत्रकारों को आमंत्रित करें तथा कार्यक्रम की प्रेस विज्ञप्ति, सूचना अपने सामाजिक अखबार वालों को भी भिजवायें।
जागो जागो मीडिया की ताकत पहचानो।
“सामाजिक पत्र आएगा घर-घर गौरव संदेश लाएगा”’
डॉ गुलाब चन्द जिन्दल ‘मेघ’
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