एक बार फिर दलित बहुजनों की एकता के आगे भाजपा ने घुटने टेक दिए हैं. बहुजन समाज के भारी विरोध के बाद भाजपा ने 13 प्वाइंट रोस्टर को रद्द कर 200 रोस्टर के पक्ष में अध्यादेश जारी करने का आदेश दे दिया है. 7 मार्च को इसकी खबर आते ही बहुजन समाज खुशी से झूम उठा. सोशल मीडिया पर एक-दूसरे को बधाई देने की होड़ मच गई. तो दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में विजय जुलूस तक निकाला गया. बीते दो सालों में यह दूसरा मौका था, जब बहुजनों की ताकत के आगे भाजपा और पीएम मोदी ने घुटने टेके थे.
पिछले साल 2 अप्रैल को भारत बंद के मंजर को याद करिए. इसी भाजपा सरकार ने एससी-एसटी एक्ट की धार को कुंद करने की पूरी तैयारी कर ली थी. अदालत में कोई सुनवाई नहीं हुई, तब दलित और आदिवासी समाज एक साथ सड़कों पर उतर गया. पिछड़े समाज ने भी तब दलित और आदिवासी समाज का साथ दिया और इस तरह बहुजन समाज की ताकत और एकता के आगे हर वक्त गुमान में डूबे रहने वाले पीएम मोदी और उनकी पार्टी भाजपा को घुटने टेकने को मजबूर होना पड़ा था.
यह कोई आम बात नहीं है कि जिस सरकार ने मीडिया से लेकर देश की कानून व्यवस्था और तमाम एजेंसियों को नचा डाला हो, वो देश के बहुजन समाज की ताकत के आगे झुकने को मजबूर हो गई. बल्कि बहुजनों की यह जीत काफी कुछ कहती है. देश के दलित, पिछड़े और आदिवासी समाज की इस जीत ने यह साफ कर दिया है कि अगर देश का बहुजन किसी मुद्दे को लेकर लड़ाई ठान ले तो उसे रोक पाना बहुत मुश्किल होता है.
दरअसल भाजपा औऱ तमाम दल बहुजनों से इसलिए डरते हैं क्योंकि बहुजनों के पक्ष में उनका संख्या बल है. जब देश के सारे बहुजन किसी मुद्दे पर एक साथ होते हैं तो दूसरा पक्ष अपने आप काफी कमजोर हो जाता है. ऐसे में उसके पास बहुजनों के आगे नतमस्तक होने के अलावा कोई उपाय नहीं बचता. बहुजनों की इस ताकत के बूते बसपा औऱ सपा उत्तर प्रदेश में कई बार सरकार बनाने में सफल रहें.
संख्या की इस ताकत को बाबासाहेब डॉ. आम्बेडकर बखूबी जानते थे, इसीलिए उन्होंने अपने जीवन में ही कह दिया था कि जाकर अपने घर की दीवारों पर लिख दो कि तुम्हें इस देश का हुक्मरान बनना है. इस वर्ग में शिक्षा का प्रसार होने और संविधान में मिले हक के प्रति समझ बढ़ने के बाद अब यह समाज अपनी लड़ाई लड़ने लगा है. चाहे दो अप्रैल 2018 का स्वतः फूर्त आंदोलन हो या फिर रोस्टर मुद्दे पर सरकार से भिड़ जाना हो, दोनों मामलों में दलित, आदिवासी और पिछड़े समाज ने बिना किसी राजनैतिक दल का मुंह देखे सत्ता पर अपने हक की मांग को लेकर हल्ला बोल दिया. और जिस मुद्दे को लेकर यह समाज इमानदारी से लड़ा, उसे जीत मिली. सत्ता से सीधी टक्कर में इन दोनों लड़ाईयों में मिली जीत बहुत कुछ कहती है.
हालांकि इस पूरी लड़ाई से अभी आदिवासी तबके को प्रमुखता से और बड़ी संख्या में जोड़ना होगा. उसकी समस्याओं के साथ दलितों और पिछड़ों दोनों को खड़ा होना होगा.
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।