नई दिल्ली। एक जनवरी को भीमा-कोरेगांव में अम्बेडकरवादियों पर हमले के विरोध में शुरू हुई हिंसा की चिंगारी देश की संसद तक पहुंच गई है. इस मामले पर तमाम दलों के नेताओं ने अपने बयान दिए हैं और इस घटना की निंदा की है. लेकिन बात-बात पर ट्विट करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस पूरे घटनाक्रम पर चुप्पी ने नई बहस को जन्म दे दिया है. इतनी बड़ी घटना पर पीएम मोदी की चुप्पी को लेकर सवाल उठने लगे हैं.
तीन जनवरी को लोकसभा और राज्यसभा में कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने भीमा-कोरेगांव में दलितों पर हिंसा के मामले को उठाया. कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने लोकसभा में बीजेपी को हिंसा के लिए जिम्मेदार बताया था. खड़गे ने कहा कि इस तरह के मुद्दों पर प्रधानमंत्री हमेशा चुप हो जाते हैं और मौनी बाबा बने हुए हैं. खड़गे ने कोरेगांव के मुद्दे पर प्रधानमंत्री से सदन में आकर जवाब देने की मांग की.
इससे पहले कोरेगांव पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी आरएसएस और बीजेपी पर निशाना साधा था. 2 जनवरी को ट्वीट कर राहुल गांधी ने कहा था कि-“भारत के लिए RSS और बीजेपी का फासीवादी दृष्टिकोण ही यही है कि दलितों को भारतीय समाज में निम्न स्तर पर ही बने रहना चाहिए.”तो वहीं गुजरात के वडगाव से एमएलए जिग्नेश मेवाणी ने भी ट्विटर पर पीएम मोदी का एक पुराना विडियो ट्वीट कर उनका मजाक उड़ाया.
दरअसल तमाम मुद्दों पर तुरंत ट्विट कर अपनी राय जाहिर करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अक्सर दलितों से जुड़े मामले में चुप्पी साध लेते हैं. गुजरात के उना में दलितों पर हुए अत्याचार और इसके खिलाफ दलितों के आंदोलन के दौरान भी इस पर देशव्यापी बहस छिड़ गई थी, लेकिन पीएम मोदी इस पर कोई भी टिप्पणी करने से लगातार बचते रहें. तो एक बार फिर जब भीमा-कोरेगांव को लेकर बहस छिड़ी है, मोदी ने चुप्पी साध रखी है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या देश में दलितों पर हो रही एक के बाद एक अत्याचार की घटनाएं प्रधानमंत्री मोदी के लिए कोई मायने नहीं रखती?