बहुजन समाज पार्टी में लंबे वक्त तक रहे भाजपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्या का हाल ही में दिया एक बयान काफी चर्चा में है. इसमें मौर्या ने मायावती सरकार से योगी सरकार की तुलना करते हुए कहा था कि मायावती सरकार वर्तमान योगी सरकार से बेहतर तरीके से काम कर रही थी. उन्होंने मायावती सरकार की तारीफ में कहा कि उनके शासनकाल में उत्तर प्रदेश में कार्यपालिका बेहतर काम करती है. कार्यपालिका ठीक से काम करे, इसलिए मायावती खुद उस पर नजर रखती थीं.
जाहिर है कि इस बयान से हंगामा होना था और हंगामा हुआ भी. औऱ हंगामे के बाद जो होता है, वह भी हुआ. मौर्या ने मीडिया पर सारा दोष मढ़ते हुए कह दिया कि उनके बयान को गलत तरीके से दिखाया गया. और लगे हाथ अपनी पूर्व प्रमुख मायावती की आलोचना करते हुए मौर्या ने उनपर दो-तीन आरोप लगाकर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की.
लेकिन इसके पहले स्वामी प्रसाद मौर्या ने जो कहा, क्या वह ऐसे ही था. या फिर उन्हें सचमुच यह लगता है कि मायावती… योगी से बेहतर थीं. क्या मौर्या अब भाजपा में खुद को असहज महसूस कर रहे हैं? पिछले दिनों हुई दो राजनीतिक हलचल पर नजर डालें तो यह साफ हो जाएगा कि मौर्या के अंदर क्या चल रहा है.
हाल ही के दिनों में मौर्या के दो करीबी रिश्तेदार समाजवादी पार्टी का दामन थाम चुके हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य के दामाद डॉ. नवल किशोर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए. तो इससे पहले फरवरी में स्वामी प्रसाद मौर्य के भतीजे प्रमोद मौर्य ने भी भाजपा छोड़ सपा का दामन थाम लिया था. तब प्रमोद मौर्या ने कहा था कि भाजपा पिछड़े वर्ग की विरोधी है, बीजेपी सरकार में उनके समाज का शोषण हो रहा है. इसी कारण वो भाजपा छोड़ सपा में शामिल हुए.
यहां सवाल यह उठता है कि भाजपा में कैबिनेट मंत्री होने के बावजूद स्वामी प्रसाद मौर्या अपने परिवार के सदस्य को न्याय क्यों नहीं दिलवा पाएं? या फिर ससुर के भाजपा मे रहते दामाद दूसरी पार्टी में कैसे चला गया? सवाल यह भी है कि क्या मौर्या खुद को भाजपा में अनफिट महसूस करने लगे हैं? और भाजपा छोड़ने से पहले उन्होंने अपने करीबियों को इशारा कर दिया है?
ऐसा होने से इंकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि स्वामी प्रसाद मौर्या जिस विचारधारा की उपज हैं, उनका लंबे समय तक भाजपा जैसी पार्टी में रहना संभव नहीं दिख रहा. एक दूसरी वजह यह भी है कि स्वामी प्रसाद मौर्या जब तक बसपा में थे वे मायावती के बहुत खास थे. वे बसपा सरकार में कैबिनेट मंत्री और नंबर दो के नेता थे. समाज और पार्टी के भीतर उन्हें एक बड़ा रुतबा हासिल था. अपने संबंधियों और समर्थकों के लिए वह सरकार में जो चाहते थे, वह करवा लेते थे.
2017 विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने बसपा का दामन छोड़ दिया और भाजपा में शामिल हो गए. वे चुनाव भी जीते और योगी सरकार में फिलहाल कैबिनेट मंत्री हैं. लेकिन मौर्या को वो सामाजिक रुतबा और पार्टी में पूछ हासिल नहीं है, जैसा कि बसपा में हुआ करता था. जाहिर है कि यह बात मौर्या को कचोटती होगी.
एक जो दूसरी महत्वपूर्ण बात है, वह यह है कि स्वामी प्रसाद मौर्या बहुजन समाज के बीच से निकले हुए नेता हैं. यह समाज विचारधारा के स्तर पर भाजपा से विपरीत है. ऐसे में मौर्या पर समाज का दबाव भी जरूर होगा. तो दूसरी ओऱ सपा-बसपा के साथ आ जाने से प्रदेश में भाजपा का सफाया लगभग तय माना जा रहा है. तब अगर भाजपा सत्ता से बाहर हो जाती है, तो मौर्या जैसे नेताओं की पार्टी के अंदर बहुत पूछ होने की संभावना कम है. ऐसे में इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि मौर्या वापस बसपा में आने की संभावना तलाश रहे होंगे, और मायावती के पक्ष में बयान देकर वह वापसी की जमीन तैयार कर रहे होंगे.
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।
Shri Swami Preshad mourya apne Aap ko Bjp me ashaj mehsus kr rhe h Isliye unko ghar vapsi ker leni cahiye par B.S.P jaldi hi join krenge to sahi hoga.