इंडियन आईडल नाम की सिंगिंग प्रतियोगिता शुरू हो चुकी है. खास बात यह है कि इस शो के प्रोमों के दौरान प्रतियोगियों की पृष्ठभूमि के बारे में बताया जा रहा है. इस शो में दलित समाज के युवा सौरभ वाल्मीकि भी पहुंचे हैं. सौरभ का प्रोमो सुपरहिट है. प्रोमों के बाद यह तय माना जा रहा है कि अपनी शानदार आवाज की बदौलत सौरभ इस गायकी प्रतियोगिता में मजबूत दावेदारी पेश करेंगे. लेकिन प्रोमो रिलिज होने के बाद सौरभ अपने ही शहर वालों के निशाने पर हैं.
दरअसल प्रोमो के दौरान सौरभ ने जातिवाद के दंश का जिक्र किया है. प्रोमो में सौरभ कह रहे हैं… कहते हैं कि म्यूजिक की कोई धर्म और जाति नहीं होती लेकिन म्यूजिक सीखने के लिए मुझे जातिवाद का सामना करना पड़ा…. सौरभ इस प्रोमो में कहते हैं कि हमें मंदिर में नहीं जाने दिया जाता, प्रसाद फेंक कर दिया जाता है. सौरभ का यह भी कहना है कि सार्वजनिक नलों से पानी नहीं पीने दिया जाता.
सौरभ के इसी बयान से उनके शहर लखीमपुर के लोग भड़क गए हैं. शहर में लोग सौरभ के इस बयान की निंदा कर रहे हैं. उनका तर्क है कि सौरभ नेशनल टीवी पर अपने लखीमपुर शहर के बारे में गलत छवि पेश कर रहे हैं. लोगों का कहना है कि सौरभ जिस तरह की बातें कर रहे हैं उससे समूचे उत्तर प्रदेश और खासकर खीरी जिले को लेकर के मुंबई और दिल्ली में बैठे हुए लोगों का नजरिया बहुत ही बदल जाएगा.
हालांकि अगर आप सौरभ के प्रोमों को ध्यान से देखेंगे तो यह साफ हो जाएगा कि सौरभ जातिवाद और छूआछूत की बात दलित समाज के लिए कह रहे हैं न कि व्यक्तिगत तौर पर अपने लिए…
सौरभ साफ कह रहे हैं कि हमें यानि दलित समाज को मंदिर में नहीं जाने दिया जाता और प्रसाद फेंक कर दिया जाता है, जो कि सच्चाई है. भारत में दलितों को आए दिन जिस कदर जातिवाद का सामना करना पड़ता है वो कोई छुपी बात नहीं है, बल्कि सरकारी आंकड़ों में दर्ज है. दलित समाज के साथ हर 18वें मिनट में अत्याचार होता है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पिछले दिनों कानपुर देहात में मंगलपुर कस्बे में पुजारी ने दलित महिलाओं को मंदिर में जाने से रोक दिया था और धमकाने लगा. जब महिलाएं जबरन मंदिर में घुस गई तब पुजारी ने उनके निकलने के बाद पत्नी के साथ मिलकर पूरे मंदिर परिसर को गंगाजल से धुलवाया. इसी तरह पिछले साल अगस्त में आई एक खबर के मुताबिक उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के मौदाहा कस्बे के गदाहा गांव में रामायण पाठ के दौरान दलितों को मंदिर परिसर से दूर रहने का नोटिस चिपका दिया गया था. तो वहीं राजस्थान के झुंझुनू जिले में बुहाना तहसील के गांव चुडिना में एक दलित के मंदिर में प्रवेश करने पर पूरे गांव के दलितों की लाठी-डंडों से पिटाई की गई.
ये महज कुछ खबरे हैं जिसे उदाहरण के तौर पर दिया जा रहा है. सोशल मीडिया पर वायरल हुई तस्वीर कि शूद्र मंदिर परिसर में प्रवेश न करें तमाम लोगों के सामने से जरूर गुजरी होगी.
इसलिए जाति की बात कह कर शहर की इज्जत को खराब करने का लखीमपुर के लोगों का तर्क भी एक तरह का जातिवाद ही है. असल में सौरभ ने समाज की उस कुरीति को कुरेद दिया है, जिसे समाज का उच्च तबका हमेशा से दबा कर रखना चाहता है. स्थानीय लोगों को यही हजम नहीं हो रहा है.
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विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।