नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मामले की सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग को कड़ी फटकार लगाई है. बता दें की संसद और विधानसभाओं को अपराधियों से मुक्त कराने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की खिंचाई की है. वर्तमान व्यवस्था के अनुसार 2 साल या उससे अधिक की सजा वाले अपराधी व्यक्ति जेल से छूटने के 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ सकते. सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल में यह मांग की गई है, कि 2 साल से अधिक सजा पाने वाले नेताओं को चुनाव लड़ने से आजीवन प्रतिबंधित किया जाए.
शीर्ष अदालत ने इस मसले पर चुप्पी के लिए आयोग के रवैये पर नाराजगी जताई. अदालत ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि क्या उसका यह स्टैंड केंद्र सरकार के दबाव के चलते है. सरकार ने दोषी ठहराए गए नेताओं को चुनाव लड़ने से आजीवन प्रतिबंधित करने का विरोध किया है. इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग के स्वायत्त संस्था होने के दावे पर भी सवाल खड़ा किया.
जस्टिस रंजन गोगोई और नवीन सिन्हा की पीठ ने चुनाव आयोग की ओर से जमा कराए गए ऐफिडेविट को पढ़ते हुए कहा कि उसका यह शपथपत्र याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्यय की चिंता को ही उजागर करता है. अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में आपराधिक मामलों का सामना कर रहे नेताओं के केसों की तेज सुनवाई के लिए स्पेशल अदालतें गठित करने की मांग की है. उपाध्याय की याचिका के मुताबिक, ‘अपराधी साबित हुए नेताओं को विधायिका, कार्यपालिका के अलावा न्यायिक क्षेत्र से भी पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाना चाहिए.’ जिसके लिये कड़ा कदम चुनाव आयोग को उठाना जरूरी है.
दलित दस्तक (Dalit Dastak) एक मासिक पत्रिका, YouTube चैनल, वेबसाइट, न्यूज ऐप और प्रकाशन संस्थान (Das Publication) है। दलित दस्तक साल 2012 से लगातार संचार के तमाम माध्यमों के जरिए हाशिये पर खड़े लोगों की आवाज उठा रहा है। इसके संपादक और प्रकाशक अशोक दास (Editor & Publisher Ashok Das) हैं, जो अमरीका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में वक्ता के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दलित दस्तक पत्रिका इस लिंक से सब्सक्राइब कर सकते हैं। Bahujanbooks.com नाम की इस संस्था की अपनी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुकिंग कर घर मंगवाया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को ट्विटर पर फॉलो करिए फेसबुक पेज को लाइक करिए। आपके पास भी समाज की कोई खबर है तो हमें ईमेल (dalitdastak@gmail.com) करिए।