इस हफ्ते की खास खबर यह है कि प्रधानमंत्री मोदी ने कविता लिख दी है. मोदी ने यह कविता महाबलीपुरम में सागर के किनारे लिखी, जहां वह चीन के राष्ट्रपति सी जिनपिंग के साथ दो दिनों की अनौपचारिक वार्ता के लिए मौजूद थे और सुबह की सैर पर निकले थे. बकौल मोदी वह सागर से संवाद में खो गए थे. मोदीजी की कविता सामने आने के बाद समाचार चैनलों को ब्रेकिंग न्यूज मिल गया है तो ट्विटर पर इस कविता को सराहने और रि-ट्विट करने की होड़ मची है. गोया यह उनके सी आर यानि करियर रिकार्ड में दर्ज हो रहा है.
इससे पहले पीएम मोदी की समुंदर के किनारे कचरा चुनने की तस्वीर भी बड़ी खबर बनी थी. पीएम समुद्र के किनारे पड़े प्लास्टिक की बोतलों को चुन कर इकट्ठा कर रहे थे. सवाल यह है कि पीएम मोदी क्यों कविताएं लिखने लगते हैं या फिर क्यों वह समुद्र के किनारे से बोतलें उठाने लगते हैं और सबसे बड़ा सवाल कि आखिर क्यों ये सारी तस्वीरें और ख्यालात सार्वजनिक किए जाते हैं. तो इसका जवाब यह है कि संभवतः पीएमओ चाहता है कि मोदीजी इस तरह के जो काम कर रहे हैं, वह सब कोई देखे. और जब ऐसा होता है तो पहला सवाल यह आता है कि क्या ऐसा दिखाने के लिए ही किया जाता है? और अगर यह दिखाने के लिए ही किया जाता है तो आखिर इसके पीछे मंशा क्या है?
इसके लिए थोड़ा पीछे जाना होगा. मोदी भारत के संभवतः पहले प्रधानमंत्री हैं जो अपने विदेशी समकक्षों से दोस्ताना दिखते हैं. अपने विदेशी समकक्षों को कस कर गले लगाना, उनके कंधे पर हाथ रख देना आमतौर पर पहले के प्रधानमंत्रियों में नहीं दिखता था. लेकिन मोदी अगर ऐसा कर रहे हैं तो आखिर क्यों कर रहे हैं?
दरअसल प्रधानमंत्री मोदी की चाहत एक ऐसे नेता के रूप में स्थापित होने की दिखती है, जिसके आस-पास कोई दूसरा नेता न हो. मोदी ट्रेडिशनल नेता की तरह नहीं दिखना चाहते हैं. भारत युवाओं का देश है और मोदी के बहाने भाजपा के केंद्र में यही युवा वर्ग हैं. अमेरिका जाकर वहां के राष्ट्रपति ट्रंप की मौजूदगी में हाउडी मोदी जैसा आयोजन या फिर मैन वर्सेस वाइल्ड शूट करना इसी का हिस्सा है. मीडिया में दिखते रहने की पीएम मोदी की जो योजना है और उन्हें लगातार दिखाने के लिए मीडिया जिस तरह बेताब दिखती है, और जिस तरह से पीएम या फिर सरकार के विरोध में उठने वाले हर सवाल को दबा देने की पुरजोर कोशिश की जा रही है, ऐसे में पीएम का कविता लिखना और कचरा उठाना ही ब्रेकिंग न्यूज बनता रहेगा.
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अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।