Monday, March 10, 2025
Homeदेशभारत को जोड़ने की जरूरत क्यों पड़ी?

भारत को जोड़ने की जरूरत क्यों पड़ी?

7 सितम्बर 2022 से राहुल गांधी के नेतृत्व में भारत को जोड़ने की यात्रा की शुरुआत की गई है। यात्रा कुल 3570 किलोमीटर होगी और यह 12  राज्यों 2  केंद्र शासित प्रदेशों के अंतर्गत आने वाले 113 स्थानों और 65 जिलों से होकर गुजरेगी। कई सवाल पैदा होते हैं जिन पर चर्चा करना जरूरी है। कुछ के मन में होगा कहां भारत टूट रहा है जो जोड़ने की जरूरत आ पड़ी। देश मात्र भौगोलिक दृष्टि से  ही नहीं टूटता बल्कि आर्थिक, समाजिक और राजनैतिक रूप से भी खंडित होता है। विरोधी कुछ भी कह सकते हैं जैसे कांग्रेस लोगों को मूर्ख बना रही है। यह भी कह सकते हैं कि कांग्रेस अपने अंतर्विरोध ख़त्म करने की कयावद कर रही है। राहुल गांधी अपना नेतृत्व स्थापित करना चाहते हैं।

भारत जोड़ना मुश्किल है और भारत माता की जय बोलना आसान है। आजादी के अंदोलन के दौर में भारत माता की जय बहुत ही प्रमुख नारा था। नेहरू जी ने इसकी सबसे अच्छी व्याख्या की है कि भारत माता की जय का मतलब क्या है?  भारत जमीन का टुकड़ा, नदी, नाले, समुद्र और पहाड़ से नही बना है। अगर लोग न हों तो किसकी जय ? अगर लोग हैं भी लेकिन नफ़रत, असमानता, भेदभाव के शिकार हों तो क्या भारत माता की जय है?

लोगों को नौकरी न मिलें और महंगाई की भयंकर मार झेल रहे हैं तो क्या  दिल से जुड़ेंगे?  संवैधानिक संस्थाएं तबाह हो रही हों और विपक्ष की आवाज़ दबाई जा रही हो तो भी भारत माता की जय है?भारत टूट रहा है लेकिन आम लोग नहीं महसूस कर सकते और वे तभी विश्वास करेगें जब यह हो जायेगा। दक्षिण भारत जैसे तमिनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक में यह भावना पैदा हो गई है कि केंद्र सरकार उनके साथ  अन्याय कर रही है। हिंदी भाषा उनके ऊपर थोपी जा रही है। संघीय ढांचा चरमरा रहा है। आम लोगों से चर्चा करें तो पता चलता है।  यह भी सोच बन रही है कि  दक्षिण भारत  राजस्व का ज्यादा योगदान दे रहा हैं परन्तु उस अनुपात में बजट का आवंटन नहीं  किया जाता। राजनैतिक शक्ति अक्सर उत्तर भारतीयों के हाथ में होती है। वर्तमान में ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स के भारी दुरुपयोग से मनभेद बढ़ा है।

अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव ही नही बल्कि बार-बार कहना कि पाकिस्तान चले जाएं, इनके मन में क्या गुजरती है, वही जानते हैं। किसी बटवारें की बुनियाद कुछ दिनों में नही पड़ती। यह प्रक्रिया है, जो समय लेती है लेकिन जब चरम सीमा पर पहुंच जाती है तो रोकना असंभव हो जाता है।

राहुल गांधी को यात्रा की शुरुआत में ही सभी वर्गो का अपार सहयोग मिलना शूरू हो गया। जो सोचा नहीं था उससे कई गुना अधिक समर्थन मिल रहा है।  हर वर्ग के लोग स्वतः जुड़ते जा रहे हैं। यह सही वक्त है तानाशाही के खिलाफ लड़ने का । यह अकेले के बस का नहीं है। सभी जनतांत्रिक ताकतों को जुड़ना होगा और दूर से चिंता करना या आलोचना से काम नहीं चलेगा। आदतन  भारतीयों की सोच है कि हमारे अकेले के न जुड़ने से क्या फर्क पड़ेगा ? इसी सोच से देश गुलाम हुआ। भारत को जोड़ने का प्रयास पार्टी स्तर से भी ऊपर उठकर किया जा रहा है। तिंरगा प्रतीक को लेकर लोग शमिल हो रहे हैं न कि चुनाव चिन्ह। विपक्ष को भी जोड़ने का आवाह्न किया गया है। तमिलनाडु के मुख्य मंत्री स्टालिन यात्रा की शुरुआत में शमिल हुए और शुभकामनाए दी। शिव सेना ने भी समर्थन कर दिया है और आशा है कि सारा विपक्ष अंत तक समर्थन दे सकता है। असंगठित मजदूर, किसान, दस्तकार, रंगकर्मी, लेखक, पिछड़े सभी मिलकर अपनी-अपनी समस्या को रखने के लिए आगे आ रहे हैं।

जो भारत की आजादी में भाग नहीं  लिए उन्हें भारत टूटने की क्या फिक्र है? 1942  में जब गांधी जी ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने का आवाहन किया था तो इनके पूर्वज अंग्रेजों के साथ थे । इनके आदर्श श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बंगाल के राज्यपाल को लिख कर दिया था कि आजादी की लड़ाई लड़ने वालों के खिलाफ शक्ति से पेश आया जाए। आरएसएस के सर संघ चालक गोलवलकर  ने यहां तक कह दिया था कि आजादी के बाद अगर दलितों और पिछड़ों को सत्ता में साझेदारी मिलती है तो बेहतर होगा भारत पर  अंग्रेजों का राज रहे। देश आगे और न टूटे उसके लिए ‘भारत जोड़ो यात्रा’ निकालना जरुरी था।

केंद्र की भाजपा सरकार के कार्यकाल में अमीर और अमीर हुए और गरीब और गरीब। यह भी तोड़ना हुआ। बड़े पूंजीपति तेजी से बढ़े हैं। यूपीए की सरकार ने 27 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाया था जबकि 8  साल के दैरान 22  करोड़ लोग गरीब हुए हैं। बढ़ती असमानता रोकी नही गई तो लोगों के मन में नफ़रत और  बढ़ेगी और भारत टूट सकता है।

कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और नेताओं के लिए यह आखिरी मौका है भारत को जोड़ने और पार्टी को मजबूत करने का। जोड़े रखने की जम्मेदारी विरासत में मिली है। उन्हें क्या जो तोड़ रहे हैं, वे तो आजादी के आंदोलन में भाग नहीं लिए उल्टे साम्राज्यवादी ताकतों के साथ रहे। कांग्रेस के अच्छे दिनों में जो सत्ता का लाभ लिए हैं, अब समय आ गया है कि  कर्ज को अदा करें। इन्हें तन, मन और धन से सहयोग देना होगा। दिखावे और परिक्रमा लगाने से अब फ़ायदा नहीं होने वाला है, क्योंकि वह  जमाना नहीं  रहा कि जब पार्टी मजबूत थी तो कोई भी चुनावी राजनीति में सफल हो जाता था। अब तो संगठन  बनाना ही पड़ेगा और लोगों से लागातार जुड़कर रहना है। भौगोलिक दृष्टि से ही देश नहीं टूटता बल्कि कई और कारण हैं, तभी इसे भारत जोड़ो कहा गया।

डॉ. उदित राज
पूर्व सांसदराष्ट्रीय चेयरमैन, असंगठित कामगार एवं कर्मचारी कांग्रेस (केकेसी) एवं
अनुसूचित जाति / जन जाति संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ
192, नॉर्थ ऐवन्यू, नई दिल्ली
मो. 9899382211, 9899766882
dr.uditraj@gmail.com

लोकप्रिय

संबंधित खबरें

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Skip to content