नई दिल्ली। पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हाल में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में पांच और भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने की मंजूरी हुई है। इनमें मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली भाषाएं शामिल हैं। इसके साथ ही अब 11 शास्त्रीय भाषाएं हो जाएंगी।
पाली व प्राकृत को शास़्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने से गौतम बुद्ध के उपदेशों व बौद्ध साहित्य को सहेजने में मदद मिलेगी। ‘दलित दस्तक’ को लखनऊ स्थित केन्द्रीय संस्कृति विश्वविद्यालय के शोध छात्र भीमराव अम्बेडकर ने बताया कि गौतम बुद्ध के उपदेश व अधिकांश बौद्ध साहित्य का सृजन पाली व प्राकृत भाषा में किया गया है। इन दोनों भाषाओं पर शोधकार्य बढ़ने से बौद्ध साहित्य को समझने व उसका दूसरी भारतीय भाषाओं में अनुवाद करने में आसानी होगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक पोस्ट में लिखा, “पाली और प्राकृत भारत की संस्कृति के मूल हैं। ये आध्यात्मिकता, ज्ञान और दर्शन की भाषाएं हैं। वे अपनी साहित्यिक परंपराओं के लिए भी जानी जाती हैं। शास्त्रीय भाषाओं के रूप में उनकी मान्यता भारतीय विचार, संस्कृति और इतिहास पर उनके कालातीत प्रभाव का सम्मान करती हैं। मुझे विश्वास है कि उन्हें शास्त्रीय भाषाओं के रूप में मान्यता देने के कैबिनेट के फैसले के बाद, अधिक लोग उनके बारे में जानने के लिए प्रेरित होंगे।”
इससे पहले ही तमिल, संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और ओडिया को शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता दी जा चुकी है। दरअसल, भारत सरकार ने 12 अक्टूबर 2004 को “शास्त्रीय भाषाओं” के रूप में भाषाओं की एक नई श्रेणी बनाने का फैसला किया था, जिसके तहत तमिल को शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया था। सरकार ने शास्त्रीय भाषा के तहत दर्जा देने के लिए कुछ नियम निर्धारित किए थे। इसमें ग्रंथों की उच्च प्राचीनता या एक हजार वर्षों से अधिक का इतिहास देखा जाएगा।
केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने साहित्य अकादमी के तहत नवंबर 2004 में शास्त्रीय भाषा के दर्जे के लिए प्रस्तावित भाषाओं की जांच करने के लिए एक भाषा विशेषज्ञ समिति का भी गठन किया था। नवंबर 2005 में इसके नियमों में कुछ और संशोधन किया और इसके बाद संस्कृत को शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया।