स्त्री जो एक जननी है, मगर ये अतिश्योक्ति ही है कि इसके जन्म पर अमूमन खुशियां नहीं मनाई जाती. हम कहते तो हैं कि बेटे बेटियां एक समान हैं, मगर फिर भी ज्यादातर घरों में उनके जन्म पर भेदभाव होता है. एक बेटी को तो कई घरों में खुशी खुशी स्वीकार भी कर लेते हैं, मगर जैसे ही दूसरी बेटी होती है, ज्यादातर की खुशियां काफूर हो जाती है. जबकि ये बात दूसरे बेटे के जन्म पर नहीं होती है. ये शायद इसलिए भी होता है कि हमारे धार्मिक ग्रंथों में भी बेटे और बेटियों के जन्म पर विरोधाभाष है. और भारतीय संस्कृति में धार्मिक ग्रंथ लोगों के विचारों में गहरे तक पैठी हुई है.
अगर हम धार्मिक ग्रंथों का संदर्भ लें तो इस बात की पुष्टि होती है. अथर्व संहिता में कहा गया है कि हमारे यहां पुत्र का जन्म हो और कन्या का जन्म किसी और के घर हो. जो नीचे लिखे श्लोक में वर्णित है.
“प्रतापतिरनुमतिः सिनीवाल्यपीक्लृपत
स्वेषूयमन्यत्र दधत्पुमांसमुदधादह ”
यहां तक की इस ग्रंथ में पुत्र के बाद भी पुत्र की ही कामना की गई है कन्या की नहीं.
“पूमांस पुत्रं जनयतं पुमाननु जायताम
भवासि पुत्राणां माता जातानां जयनाश्चयान्”
तैतिरीय संहिता में कहा गया है कि पुत्र का जन्म होने पर पिता आनंद पूर्वक माता के पास लेटे हुए नवजात शिशु को हाथों में उठा लेता था, किन्तु यदि कन्या जन्म होती थी तो वह स्नेह नहीं दिखाता था और उसे लेटे देता था. ऐतरेय ब्राह्मण में तो कन्या की उत्पत्ति को स्पष्ट शोक का कारण माना गया है. यथा “कृपणं हि दुहिता, ज्योतिहिं पुत्रः” अर्थात कन्या के जन्म से मनुष्य कृपण (गरीब/छोटा) होता है जबकि पुत्र ज्योति होता है. मतलब स्पष्ट है कि पुत्री के जन्म का न पूर्व में स्वागत होता था और न ही आज के समय में होता है. मगर फिर भी बेटियां अपने आत्मिक तेज और कर्म से धीरे धीरे अपने घरवालों की चहेती बन ही जाती है.
इन ग्रंथों का अध्ययन करें तो पता चलेगा कि बहुत सी कुप्रथाएं उस काल में नहीं थी. जैसे सती प्रथा, बाल विवाह प्रथा इसके अलावा विधवा विवाह का भी प्रचलन था. मगर इन सारी अच्छाईयों के बावजूद स्त्रियों को पूर्ण सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं थी. मनुस्मृति में आठ प्रकार के विवाह का उल्लेख मिलता है. इनमें कुछ विवाह तो स्त्रियों को समुचित सत्कार देते हैं मगर कुछ विवाह में उनकी स्थिति नरकीय ही बनी रहेगी. जैसे- ब्राह्म विवाह में वस्त्र और गहनों से सजी कन्या का विवाह वैदिक रीति से सुयोग्य वर के साथ रचाया जाता था. देव विवाह में कन्या ऋषि को उपहार रूप में दी जाती थी. तीसरा है आर्ष विवाह. इसमें वर पक्ष से दो गाय लेकर कन्या का पिता कन्यादान करता था. प्रजापत्य विवाह में बड़े बुजुर्गों के आशीर्वाद से स्त्री पुरुष गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करते थे. गंधर्व विवाह यानी प्रेम विवाह का प्रचलन तब भी था, जिसमें स्त्री-पुरुष आपसी सहमति से विवाह करते थे. छठवा है असुर विवाह, जिसमें वर पक्ष से धन लेकर कन्या उन्हें दे दी जाती थी. जबकि राक्षस विवाह में कन्या से विवाह के लिए कईयों के बीच युद्ध होता था जिसमें हत्याएं तक होती थी और जितने वाले वर को कन्या मिलती थी. आठवां है पैशाच्य विवाह. इसमें नशे, निद्रा या रोग की स्थिति में कन्या का बलात्कार कर लेने के बाद विवाह का प्रस्ताव दिया जाता था.
इन आठ प्रकार के विवाहों में ब्राह्म विवाह, प्रजापत्य विवाह और गंधर्व विवाह को छोड़कर बाकी पांचों प्रकार के विवाह में स्त्री की इच्छा और उसके मान-सम्मान की कोई बात ही नहीं होती थी. किसी विवाह में उसे उपहार स्वरूप दे देते थे. जैसे वो कोई जीवित आत्मा नहीं निर्जीव वस्तु हो. तो किसी में उसकी कीमत महज दो गाय जितनी होती थी. किसी में धन लेकर उसे बेच दिया जाता, तो किसी में उसे युद्ध द्वारा जीता जाता. तो कहीं उसके सम्मान को तार-तार कर उसे विवाह का प्रस्ताव दिया जाता. ऐसे में स्त्री की अपनी इच्छा कहां हुई. उसे तो बस वैसे चलना है, जैसे किसी ने कहीं लिख दिया या फिर नियम बना दिया. ये अंतर्विरोध ही तो है कि एक तरफ ये ग्रंथ उनके आगे बढ़ने की बात बताते हैं तो उन्हें मूक पशु के सापेक्ष प्रेषित करते हैं. यही नहीं अगर आप विवाह से संतुष्ट नहीं है और आपसी रिश्ते में कड़वाहट भी है फिर भी आप उसे तोड़ नहीं सकते. क्योंकि अगर आप वैसा करेंगे तो आपको यज्ञ करने का अधिकार नहीं होगा.
मनुस्मृति के (8/371) श्लोक में विवाह विच्छेद करने वाली स्त्री को जन समूह के सामने कुत्तों से कटवाने का विधान है. मगर पुरुषों के लिए तो ऐसा कोई विधान नहीं. उन्हें तो बस यज्ञ करने नहीं दिया जाता, यही बहुत बड़ी बात थी. इसकी वजह से धर्मभीरू लोग इससे बचते थे. तब से काफी वक्त बीत जाने के बाद आज मनुस्मृति और इस जैसे तमाम ग्रंथों की बात घोषित रूप से तो नहीं की जाती है लेकिन देश के तमाम हिस्सों में स्त्रियां आज भी उन नियमों को भोगने के लिए अभिशप्त हैं.
लेखिका शिक्षिका हैं. स्त्री मुद्दों पर लिखती हैं. संपर्क- raipuja16@gmail.com
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