नई दिल्ली। मतगणना में गड़बड़ी की आशंका पर वीवीपैट को चैलेंज किया जा सकता है. इसके लिए वोटर को केवल दो रुपये खर्च करने होंगे, लेकिन शर्त यह भी है कि वीवीपैट को गलत चैलेंज करने पर संबंधित के खिलाफ गंभीर धाराओं में रिपोर्ट दर्ज कराई जाएगी. चुनाव में पारदर्शिता लाने व पूर्व में मशीनों में गड़बड़ी के आरोप लगने के बाद निर्वाचन आयोग ने इस बार एडवांस एम-3 वीवीपैट मशीनों में यह नई व्यवस्था की है.
मतगणना के दौरान यदि कोई वोटर मशीन में गड़बड़ी का आरोप लगाता है और कहता है कि उसने वोट जिस दल को दिया था उसका वोट उस दल को नहीं पड़ा तो वह दो रुपये जमाकर वीवीपैट को चैलेंज कर सकता है. इसके बाद प्रशासन द्वारा वहां मौजूद एजेंटों के सामने संबंधित बूथ की वीवीपैट का ट्रॉयल किया जाएगा और उसकी सच्चाई को सामने लाया जाएगा. यदि आरोप गलत साबित होता है तो संबंधित के खिलाफ प्रशासन द्वारा एफआइआर दर्ज कराई जाएगी.
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 में इवीएम पर राजनीतिक दलों ने गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए सवाल खड़े किए थे. बाद में भी इवीएम पर लगातार आरोपों का सिलसिला जारी रहा. इसके बाद निर्वाचन आयोग ने एम-3 मशीन बनवाई और इसमें चैलेंज करने की व्यवस्था जारी की.
वीवीपैट को गलत चैलेंज करने पर आयोग द्वारा दो अधिनियमों की धाराओं के तहत रिपोर्ट दर्ज करने का प्रावधान रखा गया है. इसमें आइपीसी की धारा 177 के तहत रिपोर्ट दर्ज की जाएगी. इस धारा के अंतर्गत छह माह की कारावास के साथ एक हजार रुपये का अर्थदंड लगाया जा सकता है. इसके साथ ही लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 26 के तहत रिपोर्ट दर्ज कराई जाएगी.
सुनील कुमार सिंह (एडीएम वित्त एवं राजस्व व उप जिला निर्वाचन अधिकारी) के मुताबिक, लोकसभा चुनाव में निर्वाचन आयोग द्वारा पूरी तरह से वीवीपैट का इस्तेमाल किया जा रहा है. गड़बड़ी की आशंका पर वीवीपैट को चैलेंज करने की व्यवस्था बनाई गई है. यदि किसी के द्वारा वीवीपैट को गलत तरीके से चैलेंज किया जाता है तो उसके खिलाफ प्रशासन द्वारा एफआइआर दर्ज कराई जाएगी.
मतदान के दौरान जब मतदाता बैलेट यूनिट पर बटन दबाता है तो वीवी पैट में दिए गए स्क्रीन पर दल का नाम व क्रम संख्या आठ सैकेंड तक प्रदर्शित होता है. इससे वोटर की पुष्टि होती है कि उसने जिस दल व प्रत्याशी को वोट देने के लिए बटन दबाया है, वोट उसी उम्मीदवार को गया है. इसके साथ संबंधित दल व प्रत्याशी की एक पर्ची पिंट्र होकर मशीन में गिर जाती है.
वोटर वेरीफाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल यानी वीवीपैट एक तरह की मशीन होती है, जिसे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के साथ जोड़ा जाता है. इस व्यवस्था के तहत मतदाता द्वारा वोट डालने के तुरंत बाद कागज की एक पर्ची बनती है. इस पर जिस उम्मीदवार को वोट दिया गया है, उनका नाम और चुनाव चिह्न छपा होता है. ईवीएम में लगे शीशे के एक स्क्रीन पर यह पर्ची सात सेकंड तक दिखती है. यह व्यवस्था इसलिए है ताकि किसी तरह का विवाद होने पर ईवीएम में पड़े वोटों के साथ पर्ची का मिलान किया जा सके.
सबसे पहले इसका इस्तेमाल नगालैंड के विधानसभा चुनाव में 2013 में हुआ. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने वीवीपैट मशीन बनाने और इसके लिए पैसे मुहैया कराने के आदेश केंद्र सरकार को दिए. चुनाव आयोग ने जून 2014 में तय किया अगले आम चुनाव यानी साल 2019 के चुनाव में सभी मतदान केंद्रों पर वीवीपैट का इस्तेमाल किया जाएगा.
चुनाव आयोग ने चिट्ठी लिख कर वीवीपैट के लिए केंद्र सरकार से 3174 करोड़ रुपये मांगे. बीईएल ने साल 2016 में 33,500 वीवीपैट मशीनें बनाईं. इसका इस्तेमाल गोवा के चुनाव में 2017 में किया गया. बीते दिनों में पांच राज्यों के चुनावों में चुनाव आयोग ने 52,000 वीवीपैट का इस्तेमाल किया.
कैसे काम करती है VVPAT?
जब आप EVM में किसी उम्मीदवार के सामने बटन दबाकर उसे वोट करते हैं तो VVPAT से एक पर्ची निकल आती है, जो बताती है कि आपका मत किस उम्मीदवार के हिस्से गया है. इस पर्ची पर उम्मीदवार का नाम और उसका चुनाव चिन्ह छपा होता है. आपके और VVPAT से निकली पर्ची के बीच कांच की एक दीवार लगी होगी, मतदाता के रूप में आप 7 सेकेंड तक इस पर्ची को देख पाएंगे और फिर यह सीलबंद बॉक्स में गिर जाएगी, यह आपको नहीं मिलेगी. सिर्फ पोलिंग अधिकारी ही इस VVPAT तक पहुंच सकते हैं. मतगणना के वक्त किसी भी तरह की असमंजस या डिस्प्यूट की स्थिति में इन पर्चियों की भी गणना हो सकती है.
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